गुरुवार, 23 सितंबर 2010

Beti ki vidaayi

बेटी की विदाई

अंगना में बाजे शहनाई
कल तक थी जो मेरी साँसे
हुई वह  आज पराई
अंगना मैं बाजे शहनाई

दुल्हन का श्रींगार रचा  कर
तारों से  मांग सजा कर
आशीष दे कर भर- भर झोली
करूं मैं उसकी विदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई

खुशियों की बरात है आयी
फूलो की सौगात है लाई
देख चन्द्र विधु की झांकी
हुई मैं आज सौदाई
अंगना मैं बाजे शहनाई

बेटी तो है अनमोल खजाना
विदा हुई तो दर्द यह जाना
संचित कर के बाबुल अंगना
पिया घर जा कर समाई
अंगना मैं बाजे शहनाई

आशंकित मन क्यों घबराए
पिया घर जा कर सब सुख पाए
ठाकुरजी से लेत बलैयां
आँख मेरी क्यों भर आयी
अंगना में बाजे शहनाई

बेटी तो है धन ही पराया
पास इसे अपने कौन रख पाया
पिया संग जा बसे अपने घर में
यह सोच मैं करूं विदाई
अंगना में बजे शहनाई