रविवार, 14 अप्रैल 2013

शहर

शहर  

गुमसुम और चुपचाप शहर 
सुनता अपनी पदचाप शहर 
कोलाहल के संग जीता 
कलरव से  अनजान  शहर  
आशा  के तुतलाते बोल 
संग उम्मीद के बजते ढोल 
ढलते दिन और चद्ती शामे 
जीवन बिम्ब को तुला में तोल 
सूखे भावों में बहे  शहर 
बस अपनी धुन में रहे शहर 
सूनी आँखों से भरे जगत का 
करता अंगीकार  शहर