बुधवार, 15 अगस्त 2012

चाँद

चाँद
 
यह चाँद चमक कर बोल रहा
बातें मन की सब खोल रहा
बात हुई जब गैरों की
आँखों से आंसू सूख गये
अपनों का राग छिड़ा जब कल
दरिया कितने ही उमड़ गये  
क्या स्वार्थी मन की बात करूं
अपनों का  दर्द तो मेरा है  
दूसरों के  दुःख की चिंता हो क्यों
वह तो जीवन का फेरा है
वाह रे ! ओ दयालू मानव  
चला जीवन रहस्य को अपनाने
जीत ना पाया मन  को इस  धरती पर
 चला चाँद पर विजय पताका फहराने
 
 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

चिंगारी

चिंगारी
चिंगारी
एक ख्वाब था नयनो में
जिसे  दिल ने तराशा था
एक सांझ उतरती थी
जिसे दिन ने संभाला था
जीवन के फलसफो पर
हज़ारो ही   फ़साने थे
श्वासों की  वीणा पर
बस तेरा ही  तराना था
 बैठे रहे ओंठो पर 
बन कर एक   तब्बस्सुम
राख हुई जाती थी  शमा
बस जलता परवाना था
यादों के धुध्लकों में
दबी  थी वह चिंगारी
भूडोल उठा सागर में
झुलसा यह  जमाना था
खो जाना ना " नीरज"   
इन ज्वाल तरंगो में 
रूकने को नहीं वो बस 
कुछ और  ठिकाना था  

आत्म- विश्वास

आत्म- विश्वास
 
 किस दौर से गुज़रा हूँ
किस दौर में जाना है
आशंकित उदासी से
घिरा आज जमाना है
चुपचाप हटाता हूँ वह जो
वक्त पे दीमक है
इतिहास के पन्नो पर
बस मेरा ही फसाना है
 
पायोगे मुझे हर जर्रा जो
नज़र मेरी   सी  पायोगे
जी जाओ गे हर लम्हा
जो धुन मेरी ही गाओगे
कर जाओगे तुम पार 
समुदर यह रिचायों का 
हर उठती हुई  ऋचा  पर
जो  श्रुति मेरी लगाओ गे 
 
कब, किस वक़्त क्या हो जाए !
इस का अनुमान नहीं है
भरोसों  पर ही जिन्दा हूँ
इस का गुमान नहीं है
टिक जाते है धरती पर जब मेरे कदम 
बढ़ कर जो ना छू लू 
ऐसा आसमान नहीं है