मंगलवार, 31 मई 2011

Daastan


दास्ताँ 
वह  दर्द बैठा था किसी कोने में यूं छुप कर 
भरी अंजुली में जैसे छिपा आफताब हो जैसे 
है कोसो दूर  फिर भी छूता है  बेबाक हर कोना 
दिया हो सृष्टि ने तोफहा मुखालिफ हो भले  या ना 

जगमगा उठे भले ही  जुगनू लाख इस  तम में 
श्यामिल ही बनी रहती है काली रात यूं नभ में 
तमस का चीर कर आँचल बरसती हैं सुनहरी जब 
झकझोर देती है और देती है सदायें यह मन में 

होता अगर कही कोई दुनिया में शहर  जुदा सा 
 तो कर लेते हम भी बस  यूं ही निभाह अपना 
होता गर कही  कोई दुनिया में  दैरो हरम अपना  
तो कर लेते बसर  हम भी बना कर  आशियाँ अपना 

रविवार, 22 मई 2011

anaath aankhe



अनाथ आँखे 

याद आती है मुझे आज भी उसकी आखों की वह उदासी 
सब कर लिया था हासिल , फिर भी रूह जैसे  थी प्यासी 
वोह तैरते आँखों में स्वप्पन थक कर लगे थे एक  किनारे 
वोह सिले खामोश लब , बस  नाम था  एक  ही पुकारे 
आज भी चुपचाप सी  वह कर रही है  इंतज़ार 
शायद दो बूंदे मिले उस स्नेह की जिस केलिए है  बेकरार 
अजीब है यह "चाहतें " क्यों सब डूब जाना चाहते हैं 
उम्र भर पा कर भी सब कुछ रीत जाना चाहते हैं 
तंगदिली  देखें ज़रा हम भी तो अब इस जहाँ की  
देदिया सबकुछ बस दो बूँद को तरसाना चाहते हैं 

chodo ! jaane do!!


छोड़ो ! जाने दो !!

बड़ी सहजता से 
कह दिया तुमने 
छोड़ो ! जाने दो !!
महसूसा कभी तुमने 
जाने के बाद 
उस खालीपन को 
जो कभी भर ही नहीं सका !
रिक्तता हर पल 
ठगती है 
तडपाती है 
झुलसा जाती है 
संवेदना जगाती है
मंथन करती है भावों का 
'कुछ कमी है '
एहसास कराती है 
क्या समझ पाओगे तुम 
अछूते हो ,अनभिघ्य हो 
सच के धरातल पर 
श्रम के मोती  बोते हो 
फसल पकती है कटती है 
क्रम को निभाते हो 
भावों की खरपतवार 
जड़ से मिटाते हो 
एक मैं हूँ जो 
गीतों की खेती करती हूँ 
कुछ नया उपजाने को 
भावो की माला पिरोती हूँ 
बुनती हूँ कोरे स्वप्पन 
जिन्हें वक़्त का समुंदर  
अपने साथ बहा ले जाता  है 
छोड़ जाता  है मुझे तट पर 
अकेले और कोई आकर 
यह समझाता है 
छोड़ो ! जाने दो !!!

शनिवार, 21 मई 2011

jikr tera


जिक्र तेरा 

इक  ख्वाब बुना  
तस्सुवर ने मेरे 
कुछ उम्मीद बंधी 
जिक्र से तेरे 
शोख शहर 
लगने सा लगा  
तन्हा था सफर 
कटने सा लगा  
 हाय ! यह कैसी 
परवशता है पल की 
 वह शोख शहर
आग उगलने
 सा लगा है 
छू लिया इक तार 
अदृश्य नेपथ्य  ने !!
वह ख्वाब सुहाना 
डसने सा लगा है 
वह जिक्र तेरा 
छलने  सा लगा है 
रोता है यह दिल 
चुपचाप अकेले 
क्या कहें! किस से कहे !
आलम यह दिल का 
फूल सा नाज़ुक है 
बिखरने सा लगा है !!
 


gumraah


जाने दो !!!!
भूल चुका रास्ता अब उस दर -ओ दीवार का
कोई भी अब  रह गुज़र  राह दिखलाती नहीं 
कर दिया  गुमराह अब  बेनाम अंधेरों ने मुझे 
 कोई भी अब नव   किरण मार्ग चमकाती नहीं 
लग  गयी जो आँख  समझा तुम ने भी था ए दोस्त 
दे गयी है यह दगा अब याद भी भाती  नहीं 
मत करो तुम भी अभी मेरी उदासी का इलाज 
जाने दो ! कोई  तक़रीर अब  मुझको सुहाती ही नहीं

bandhan


बंधन 
बंधन  अनजाना  
इक तार से जुड़ा है 
रहता है  कहीं दूर 
रूहों में मिला है 
यह कैसा  सम्मोहन  
या कोई कशिश है 
इक  शख्स ख्यालों में 
पलता ही रहा है 
उठती  रही प्यास 
पाने को उसको 
बढ़ते रहे  हाथ 
छू लेने को उसको 
वह चश्म -ए तरुनम
या नूर-ए-इलाही 
'जिन्दा हूँ अभी '
उसका एहसास 
देता है गवाही 

गुरुवार, 19 मई 2011

jaroor hogi sahar


जरूर  होगी सहर

टूट ही गया रखा था संभाले जो यह दिल
जाने तुम्हे इस बात का इल्म हो या ना हो
बनते है बिगड़ते हैं यहाँ अफ़साने हज़ारों
जाने तुम्हे इस बात का एहसास हो कि ना हो
मुमकिन था तुम्हारे लिए मुझे यूं छोड़ के जाना
जाने तुम्हे इस बात का अंदाज़ हो कि ना हो
दे दे कर बुलाया था जिसे  हमने सदायें
निकलेगा वोह  सितमगर यह पता हो कि ना हो
अब गमजदा क्यों हो कर बठे हैं यूं नीरज
उठती है कलेजे में टीस-ए मोहब्बत
गर लोगे समझ यह बात जीते जी जहाँ में
खिलते नहीं है फूल सदा बाग़-ए-वफा में
हो जाए गा सरल यह कढी धूप का सफर
हो कितनी भी लम्बी रात जरूर होगी सहर
 

शनिवार, 14 मई 2011

मेरी इच्छा ( written by My 9 yr. old daughter Sanjit)


मेरी इच्छा
मित्रों ! मेरी अनुजा संजिती(९ वर्षीय)  का यह कविता कहने का  पहला प्रयास है
अपने मन की बात को उसने किसी कवित का रूप दिया है ...........

मेरी इच्छा

जी चाहता है पंछी बन कर नील गगन में उड़ जाऊं
जी चाहता है मीना बन कर पानी में मैं तर जाऊं 
जी चाहता है वर्षा रुत में मोर सरीखे पंख फैला कर नाचूं 
जी चाहता है बन प्राणी जंगल का स्वछंद विचरता जाऊं 
जी चाहता है अब के बरस इन छुटिओं में 
ना हो कोई बंधन 
हर पर खेलूँ और जियूं एक अनूठा जीवन 

Apni talassh main

 अपनी तलाश में 

जितना भी दर्द में डूबोगे 
उतना गहराते जाओ गे 
जब तोड़ भंवर से निकलो गे 
 मंजिल खुद ही पा जाओगे 
यह सुख दुःख तो  परिभाषा है 
संग जीवन का कुछ मेल नहीं 
पल इक अनमोल  खज़ाना है 
लौटा पायो! कोई खेल नहीं 
तो जियो इसी के साथ जियो 
और मरो ! इसी के साथ मरो 
हर कोई इस जग में  तन्हा है  
यह बात अधूरी सी लगे भले 
जीवन का सार है यही छुपा 
यह बात अपनी ना क्यों लगे हमे
"मैं हूँ" तो मेरा साथ भला 
"मैं हूँ "तो सब गम सह चला 
"मैं हूँ "तो खुशिया हैं मेरी 
"मैं हूँ" तो दुनिया है मेरी 
क्यों बाहर भीड़ की दुनिया में
सर्वस्व तलाशा करते है 
क्यों ना बन कर खुद अपने के 
भीतर महसूसा करते है 











शुक्रवार, 13 मई 2011

Namm tumhara hoga


नाम तुम्हारा होगा 

रुकी रुकी थी साँसे मेरी ,और थी थमी थमी सी धड़कन 
रूखे  तप्त ओ'  सुर्ख लबों पर फैल गयी थी मीठी शबनम 
गोरी बैयाँ पर निज हाथों से जब स्पर्श दिया था तुमने 
कसमसा जाती  थी देह , और ज्वार उठता था मन में 

जल उठते थे दीप हज़ारों , रौशन होता तम था 
पट प्राची का खुल जाता, पुलकित शून्य विजिन था 
मधुकर नव तरंगित लहरें लहर लहर उठती थी 
पीयूष रस गागर छलका कर जीवन विष  हरती थी 

झोंका तेरे नव ख्याल का जब भी मन अंगना  में आता  
महकते मधुमास का सौरभ हर जर्रे में बिखरा जाता 
पास रहो या रहो दूर अब ,हर पल ध्यान तुम्हारा होगा 
सौ सौ श्वास रहेंगे मेरे , इन पर नाम तुम्हारा होगा 

बुधवार, 11 मई 2011

jaane yh kaisa hai bandhan

जाने यह कैसा है बंधन 

बंधा मगर, उन्मुक्त हुआ मन  
मौन,मुखर की परिभाषा से
अनभिग्य हुआ जाता हर क्षण 
सुंदर, सहज, सरल, हठीला 
अपरिमित ,सीमा में संकुचित 
अहम भाव से है गर्वीला 
कुछ कहने ,करने को उद्यत 

जाने यह कैसा है बंधन 
केवल तुम ही नहीं बंधे हो 
हम भी है अब इस बंधन में 
डोर एक, दो छोर हुए हैं 
मंजिल एक दो मोड़ हुए हैं 
जीवन पथ पर  चलते चलते 
एक हुए दो बिछड़े  जन 

जाने यह कैसा है बंधन 

शनिवार, 7 मई 2011

wakt ki chot

वक्त की चोट जब लगती है गहरी
दर्द ख़ुशी का बन जाता है प्रहरी
बन जाते हैं अश्क दिल की जुबानी
भीगे हुए नयन कहें  दिल की कहानी
ज्वार उमड़ आता है दिल के समुंदर में
घुटते है  अरमान किसी घायल परिंदे से
क्या बात करे इस दिल की
कब तक  इस बहलायेगा
दिल ही तो है  यह आप ही संभल ही जाएगा
कौन रोक पाया है उफनते दरिया को
यह वक़्त ही तो है गुज़र ही जाए गा ...

मंगलवार, 3 मई 2011

chamkati aasha


चमकती  आशा 

चमकते सूरज ने फिर आज 
इस धरती को रंग डाला 
सुनहरी  धूप के  जादू का 
अजब जाल फैला  डाला  
लिया हिंडोल यौवन ने 
स्वप्पन फिर झूम कर उमड़े 
चले फिर आजमाईश को 
हुए कुछ बीज नवान्कुरे 
चुरा ना ले कोई इस धूप का जादू 
कर लो बंध मुठी न हो जाए यह बेकाबू 
अनगिनत ख्वाब चमके हैं इसकी किरणों से 
नाप लेंगे यह ब्रहमांड सारा तीन चरणों से