जाने यह कैसा है बंधन
बंधा मगर, उन्मुक्त हुआ मन
मौन,मुखर की परिभाषा से
अनभिग्य हुआ जाता हर क्षण
सुंदर, सहज, सरल, हठीला
अपरिमित ,सीमा में संकुचित
अहम भाव से है गर्वीला
कुछ कहने ,करने को उद्यत
जाने यह कैसा है बंधन
केवल तुम ही नहीं बंधे हो
हम भी है अब इस बंधन में
डोर एक, दो छोर हुए हैं
मंजिल एक दो मोड़ हुए हैं
जीवन पथ पर चलते चलते
एक हुए दो बिछड़े जन
जाने यह कैसा है बंधन