जिक्र तेरा
तस्सुवर ने मेरे
कुछ उम्मीद बंधी
जिक्र से तेरे
शोख शहर
लगने सा लगा
तन्हा था सफर
कटने सा लगा
हाय ! यह कैसी
परवशता है पल की
वह शोख शहर
आग उगलने
सा लगा है
छू लिया इक तार
अदृश्य नेपथ्य ने !!
वह ख्वाब सुहाना
डसने सा लगा है
वह जिक्र तेरा
छलने सा लगा है
रोता है यह दिल
चुपचाप अकेले
क्या कहें! किस से कहे !
आलम यह दिल का
फूल सा नाज़ुक है
बिखरने सा लगा है !!