शनिवार, 21 मई 2011

jikr tera


जिक्र तेरा 

इक  ख्वाब बुना  
तस्सुवर ने मेरे 
कुछ उम्मीद बंधी 
जिक्र से तेरे 
शोख शहर 
लगने सा लगा  
तन्हा था सफर 
कटने सा लगा  
 हाय ! यह कैसी 
परवशता है पल की 
 वह शोख शहर
आग उगलने
 सा लगा है 
छू लिया इक तार 
अदृश्य नेपथ्य  ने !!
वह ख्वाब सुहाना 
डसने सा लगा है 
वह जिक्र तेरा 
छलने  सा लगा है 
रोता है यह दिल 
चुपचाप अकेले 
क्या कहें! किस से कहे !
आलम यह दिल का 
फूल सा नाज़ुक है 
बिखरने सा लगा है !!