शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

Bas ek hi pal main

 बस एक ही पल में

वोह एक पराया सा, हो गया अपना, बस एक ही पल में
वोह एक साया था ,जो खो गया मुझ में ,बस एक ही पल में 
बजता रहा चार सु किसी साज़ सा
पर   छुपा  रहा वोह किसी राज सा 
हर जगह उसका बिखरा था एहसास 
चाह लिए मिलन की एक अनबुझ प्यास 
वोह एक बेगाना, कर गया दीवाना , बस एक ही पल में
वोह एक अनजाना , बन गया परवाना , बस एक ही पल में 
 आने लगा वह सहज मीठी याद सा 
खामोशिओं में एक मधु आवाज़ सा  
 जल रहा है दीप बन किसी देहरी  का 
मस्त फक्कड़ पीर की मज़ार सा 
वोह  एक ख्वाब  , बन गया नयनाभ   , बस एक ही पल में
वोह एक सुआभ  , बन गया  श्वास , बस एक ही पल में

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

icchit sapne saty kar jaataa

इच्छित सपने सत्य कर जाता 

पल अब तक जो बीत गया है
वह मेरा था और मेरा ही रहेगा
शंकित तम में डूबा हर कल
आशित किरणों से रौशन होगा
संध्या का गर डूबा सूरज तो
मत समझो कि प्रयत्न हीन है
काल रात्रि में जो विधु चमके
मत समझो कि बड़ा क्षीण है
देखा सपना गर मैंने उड़ने का
बिना पंख के भी उड़ा हूँ मैं
देखा सपना सागर पर चलने का
तो बिन पग के दौड़ा हूँ मैं
सपने देखा करता हूँ जगते मैं
सो जाता जग , तो मैं जग जाता
भीषम प्रतिग्य हूँ , वंशज हूँ ऐसा मैं
इच्छित सपने हरदम सत्य कर जाता

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

sach ho sab sapne

 सच हो सब सपने!

बहुत दूर ले आयी है मुझे, मुझ को मेरी तन्हाई
अब बैठ किनारे पर यूं लहरें गिना करता हूँ 
डूब  गयी कुछ चाहतें जीवन के समुंदर में 
अब बैठ किनारे पर वह मोती चुना करता हूँ
गम और ख़ुशी के यह ज्वार ना बहकाएं कभी
अब बैठ किनारे पर इन्हें  साँसों में भरा करता हूँ
जीवन है एक सपना , सदियों से सुना है हमने
अब बैठ किनारे पर ,कुछ स्वपन  बुना करता हूँ
सच है या झूठ है सपने इस तक़रीर में नहीं पड़ता
अब बैठ किनारे पर ,सब सच हो!  दुआ  करता हूँ

fursat

फुर्सत

एक हम हैं कि बड़ी  फुर्सत में बैठे हैं
और  कुछ ऐसे हैं कि उन्हें  फुर्सत ही नहीं मिलती
कुछ पल दो पल बड़ी उम्मीद के पाले हैं
और चाहने वालो की खबर भी नहीं मिलती
लम्हों की कैद में बेबस हुआ यह जीवन
दम घुट जाए कयामत हो पर जीस्त  नहीं मिलती

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

jara sochiye

जरा सोचिये !!!!

कितना व्यस्त जीवन है . प्रत्येक कार्य के लिए दिन  और समय पहले से ही निशित कर के रखना पड़ता है. कही भी किसी कार्यालय में किसी अधिकारी से मिलने जाओ तो मुलाकात का समय अगर पहले से निश्चित है तो आप को मिलने का अवसर मिलेगा वरना आप चाह कर भी नहीं मिल सकते . यहाँ तक कि इलाज़  करवाने के भी डाक्टर के पास मुलाकात का समय निश्चित करना पड़ता है कई बार ऐसा भी होता है कि डाक्टर से वक़्त तय नहीं हो पाया और मौत बिना किसी इजाज़त के आप की जिंदगी में प्रवेश कर जाती और आप को अपने साथ लेजाती है .

जरा सोचिये  ....

अपने मित्रों ,सगे सम्बन्धियों , बच्चों और यहाँ तक कि जीवन साथी से मिलने के लिए भी वक़्त की तलाश करनी पड़ती है .
कितने प्रगतिशील हैं हम ?
मुलाकात का वक़्त तय करने का भी कभी समय नहीं होता. इस लिए सर्वसम्मति से कुछ दिन तय कर लिए
शायद वैलन्ताईन डे भी इसी का उदहारण है
अपने प्यार को याद करने और करवाने के लिए , इस प्यार का एहसास करने और करवाने के लिए किसी ख़ास दिन का सहारा लेना पड़ता है
क्यों नहीं जिंदगी का हर पल वैलन्ताईन डे हो सकता .?
क्यों प्यार किसी पल का मोहताज़ हो गया है ?
मानव क़ी भावनाओं का भी मशीनीकरण क्या एक ठोस समाज और मानव के कोमल मन को संतुष्ट कर पायेगा ?
जरा सोचिये ?

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

krishak

कृषक
माथे पर छलके नन्हे स्वेद कण
चमके जैसे सुंदर मणियाँ
धरती पर गिरते मोती बन कर
खिलते जैसे स्वर्ण बालियाँ
गेंहूं बाजरा भुट्टा चावल
लहलहाते खलिहान प्रति पल
माटी में माटी सा हो कर
कड़ी  धूप में देता जीवन जल
सच है कृषक है पोषण करता
ऊँचा है मानव में दर्जा
इस धरती का पालनहार
सब लोगो की भूख को हरता
पर हाए! भाग्य है उसका खोटा
सदा सूद का बोझा ढोता
क्या कभी विचारा है हम सब ने
क्यों बेचारा किस्मत को रोता ?

nanhi kilkaari

 नन्ही किलकारी

जिस दिन था वह गर्भ समाया
सब कुछ बदला मैंने पाया
हर पल तकता आँखे मींचें
सब कुछ बोले ओंठों को भींचे
मेरी पीड़ा महसूस करे
धमनियों से रक्त हरे
अस्थि मज्जा मेरी पा कर
 दिन प्रति दिन परिपूर्ण बढे
मॉस नौ या दिन सत्तर दो सौ
ख़तम अवधि क्षण में ज्यों
व्यकुल हुआ जब हुआ पूर्ण तो
तड़प उठे जग में आने को
प्रसव वेदना झेल अथाह
बही वत्सलता तीव्र प्रवाह
अंक सजी सुंदर फुलकारी
  गूँज उठी  नन्ही किलकारी

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

nas nas mere aan base tum

नस नस मेरे आन बसे तुम  !!

कौन हूँ मैं,  क्या अस्तित्व है मेरा
तुम बिन गौण व्यक्तित्व है मेरा 
तुम रूकते! तो मैं रूक जाती
तुम चलते! तो मैं चल पाती
श्वास श्वास में तेरी साँसे
हर धड़कन में तेरी बातें
अंग अंग में  तेरी खुशबू
दिल में बसी तेरी जुस्तजू
मैं हूँ तब भी  मैं नहीं मुझ में
सरगम हूँ पर स्वर नहीं मुझ में
तुम तो तुम हो ,मैं भी तुम हो
हर इक रंग में मेरा रंग हो
मौन ,मुखर ,निशब्द रहे  तुम
पीड़ा हर्ष अवसाद सहे  तुम
हर श्रेणी आलिंगन कर के
  नस नस  मेरे आन बसे  तुम










गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

Devdoot

देवदूत
 छाए थे संकट के बादल
हताश निराशा अवसाद के बादल
बरसाते थे आग धरा पर
द्ह्काते थे ज्वाल धरा पर
जन  जीवन संतप्त हुआ था
विहल कंठ अवरुद्ध हुआ था
मूक आगमन हुआ तुम्हारा
विष जीवन  किया शोषित सारा
कलश हर्ष सुधा का छलके
 तुम आये इक  देवदूत बनके 











शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

shushak taru

शुष्क तरु

करने को पूरी बात अधूरी
चिर प्रतीक्षित खड़ा हूँ आज
अंतस में साधे विकल साध
चिर अनंत में पड़ा हूँ आज
मूक  तपस्वी सा समाधिस्थ
ठोस  पुरातन का सूचक
अटल अडिग कठोर शुष्क सा
हरित तरु सुख का ध्योतक
सहता हर ऋतू  का परिवर्तन
देता तब भी सुख की शीत
इंतज़ार ! बस इंतज़ार है
कब लौटो गे मन के मीत



patang

पतंग
बंध कर डोर के साथ रहो
तो भरोगे ऊँची उड़ान
छोड़ा गर साथ डोर का तुमने
कटोगे, गिरोगे हो जायोगे लहूलुहान
पाँव रख  धरती  पर
छू लो तुम गगन
ऐसा सन्देश सुनाती है पतंग
यथार्थ के धरातल को
 कल्पना के पंख दे
ऊँची उड़ान दे जाती  है पतंग
नियम एक डोर है
जुड़ कर जिस  से
जीवन की  ऊँचाई को
दर्शाती है पतंग

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

निगाह -ए-इंतज़ार

निगाह -ए-इंतज़ार

निगाहें तकती है उस रह गुज़र मुड़-मुड़ के हर पल
सोचते है लगे  सब खास पहरे आम हो जाए
पिला दो जी भर के ऐ साकी मुझे अपने हाथो से 
हर एक कतरा मय का तेरी रूह के नाम हो जाये
जिए है हम तस्सुवर में तेरे, ए दोस्त सारी  उम्र
चले आओ इस से पहले कि जिंदगी की शाम हो जाये
करो वादा जो  आओगे अब ,तो न छोड़ कर जाओगे
कही इंतज़ार में  यूं  ही न सारी उम्र तमाम हो जाए 

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

sankalp

 संकल्प

जीवन की दल-दल से जितना भी मैं बचता
धंस जाता हूँ हर बार उनमे   उतना ही  गहरा
गिर कर उठता , उठ  कर हर बार संभल  जाता 
मन्त्र यही कि सड़ ही जाता है पानी ठहरा !

आशा की रौशन किरणों से
रोज़ सवेरा जगमग होता
दिनभर की फिर हार-जीत में
रोज़ संध्या से धूमिल होता
हार-जीत के संघर्षो से   जितना भी  बचता
फंस जाता हूँ हर बार उनमे   उतना  गहरा
तज शंका, प्रयत्नों में, मैं लग जाता
मन्त्र यही कि प्रयत्न विफलता का कड़ा पहरा !!

आशंकित होता है हर बार उठने वाला पग
नैया होगी सागर के सीने पर   डग-मग
पाल और पतवार पुराना ,दूर कूल है
यही नियति है  ,क्यों मैं मानू,  क्या नही भूल है?
शंका की उठती लहरों से जितना भी  बचता
अटका जाता उन लहरों  में,  उतना ही  गहरा
विश्वासित हो कर लड़ता जब उन लहरों से
मन्त्र यही कि संकल्प सदा शंका  पर है लहरा  !!!

Rahiye ab aise jgh

रहिए अब ऐसी  जगह

घबरा  गया हूँ अब तेरी यादो की जकड़न से
कैसे हो पाऊँ    मुक्त  तेरे   वादों की पकड़न से
 सोचा चला जाये किसी ऐसे  गगन   में
जहा तेरी यादों  के बादल ना तैरते हों
सोचा चला जाए किसी ऐसे  धरातल पर
जहा तेरी यादों  के जाल ना फैलते हो
बन जाऊं कोई ऐसा निर्झर
जो बिना तेरे नाम के कल-कल बहता हो
हो जाऊं कोई  ऐसा साग़र
जिसमे तेरे नाम का ज्वार ना आता हो
चल कर रहूँ अब ऐसी जगह
जहां अब और कोई रहता ना हो