मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

sach ho sab sapne

 सच हो सब सपने!

बहुत दूर ले आयी है मुझे, मुझ को मेरी तन्हाई
अब बैठ किनारे पर यूं लहरें गिना करता हूँ 
डूब  गयी कुछ चाहतें जीवन के समुंदर में 
अब बैठ किनारे पर वह मोती चुना करता हूँ
गम और ख़ुशी के यह ज्वार ना बहकाएं कभी
अब बैठ किनारे पर इन्हें  साँसों में भरा करता हूँ
जीवन है एक सपना , सदियों से सुना है हमने
अब बैठ किनारे पर ,कुछ स्वपन  बुना करता हूँ
सच है या झूठ है सपने इस तक़रीर में नहीं पड़ता
अब बैठ किनारे पर ,सब सच हो!  दुआ  करता हूँ