शनिवार, 1 मार्च 2014

जग समीक्षा

जग समीक्षा

यह जग भले बिसार  दे 
या व्यर्थ की गुहार दे 
ताज सा वोह शीर्ष पर 
बिठा के भी  उतार दे 

न रूकना तुम 
न झुकना तुम 
न मौन दृगों से ताक कर
हृदय से यूं सिसकना तुम 

हाथ श्रम कुठार ले 
वक्त की बयार ले 
अपने मन को बाँध कर 
बस यूं ही आगे बढ़ना तुम 

सराहना  नहीं है माप दंड
निज  प्रयत्न की ,पुरषार्थ के 
पग मंजिलो को चूमते 
साक्षी है परमार्थ के




 




शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

आचरण


आचरण 

अगर कोयल को  कोई कौआ कह  दे तो इसमें कोयल को कोई फर्क नहीं पड़ता ,वह  कहने वाले की  मूर्खता को भी कोई भाव नहीं देती न हंसती है न रोती है न गुस्सा करती है और न ही उसे कुछ समझाने की कोशिश करती है। ....अपना जीवन जीती है और अपना कार्य करती है अपनी मधुर आवाज़ से कूकती है। …कोई उसकी कूक से खुश होता है और कोई उस पर क्रोधित होता है कोई ईर्ष्या करता है और कोई गर्व। ....लेकिन कोयल इन सब बातों से अप्रभावित ही रहती है और अपने कार्य में लिप्त हो अपना जीवन जीती है। …आनन्द से,गर्व से 

कोयल सा आचरण अपनाओ। ………

शनिवार, 11 जनवरी 2014

निकल गये तुम 
बहुत दूर 
लौट पाना 
नामुमकिन तो नहीं 
लेकिन मुश्किल 
है ज़रूर 



शनिवार, 4 जनवरी 2014

स्थिरता

 स्थिरता
कहा  किसी ने व्यर्थ है यह सब
कहा किसी ने केवल छल
कहे कोई यह मात्र कपट है
कहा  किसी ने केवल भ्रम
लकिन सच चाहे मत मानो
कठिन कार्य है यूं ही बहना
उलटी धारा में स्थिर रहना



नव वर्ष की शुभ कामनाएं

  नव वर्ष की शुभ कामनाएं  

हर बात उठे जज्बात लिए
हर काम नया अंदाज़ लिए
हर सोच मुकम्मिल हो सब की
हर दिशा नई आगाज़ लिए
हो सफल सभी प्रयत्न तेरे
मिले पग डगर सुमंगलमय
हो  विश्वास कर-कर्मो पर
अभिलाष जगे नव मंगल मय
 यह वर्ष भरे आलोकिकता
हर पल जगाय नयी चाह
पूर्ण करने को निज सपने
हर पल सजायो कर्मठता