रविवार, 8 जुलाई 2012

कसक

कसक
 
 क्षुधा-  पिपासा हर चाहत की
जैसे आज रुग्न हो गयी
पग बोझिल अब हुआ पथिक का
चाक अंधेरों में घिर आया
रंजित हुआ मन का गुलशन
अवसादित हर फूल कुह्म्लाया
मत  बात करो ऋतुराज  की मुझसे
पतझर और कितने आने है
रूठ गये  हैं छंद  और मुक्तक
गीत और अब क्या गाने है
अंकित करता अपने पथ पर
छाप तेरे हर पद आहट की
संचित करता अपनी झोली में
मुस्काते तेरे साए की
नहीं तकता मैं  बाट तुम्हारी
नहीं होता मन झंकृत तुमसे
कसक अभी जिन्दा है लेकिन
लडती है  अपने ही मन से

जल

जल
जल ही जीवन है
विनाश भी जल है
जल  कर जी जाए जो
क्या ऐसा भी कोई पल है ?
आँख से टपका तो जल था 
खून जिगर का -तो जल था 
विस्तृत नभ के आगोशों में 
छिपा जो बादल -वह जल था 
सूखे चश्मे -निर्झर झर 
पल्लव पल्लव ढूंढे जल 
तप्त पिपासित चातक नभ में 
चोच उठाये -चाहे जल  
बूँद बूँद की अभिलाषा में
संचित करता उर में जल
जल जल कर तन  भस्म हुआ तो
सिंचित मन  को करता जल
अकेलापन
अब मुझे
कभी नहीं सताता
कभी नहीं डराता
इक एहसास ऐसा
जिसकी पहचान
अपने से कराता
शायद इक यही है
जो केवल मेरा अपना है
और लिपट कर मेरे साए से
मुझे जीने के राह दिखाता
डर लगता था जो कभी अंधेरो से
उनमे भी आशा का दीप टिमटिमाता
 

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

कुछ लिखना चाहती हूँ लेकिन लेखनी रूक रूक जाती है
कुछ सोचना चाहती है  लेकिन कल्पना जैसे पंख विहीन हो गयी है
कुछ कहना चाहती है लेकिन कंठ जैसे अवरुद्ध हो गया है
ख्यालो के मुसलाधार बारिश हो रही है लेकिन कही भी उनका जमाव नहीं है
एक आता और दूसरा जाता है . एक रेला जैसे कही कुछ दूर बह कर कुछ स्थान ढूँढ रहा हो
आज उसे अहसास हुआ कि  परिपक्वता का अनुभव कुछ अनबोला और अनकहा सा होता है
सच बचपना जीवन में अपना अधिपत्य बना कर रखे तो ही अच्छा है ........................

रविवार, 1 जुलाई 2012

क्या ?

क्या ?
 
गीतों में प्राण नहीं होते हैं
मन के कोरे  भाव है यह
भावो के प्राण नहीं होते हैं
रजनी के श्यामल आँचल में
शबनम के आंसू झरते हैं
दिनकर की रौशन  किरणों से  
संतप्त ताप तम हरते हैं
हरते तम के उन गीतों में
उखड़े श्वास नहीं होते है
हर एक श्वासित गीत में देखो
अमृत्य भाव छुपे होते हैं
 

महत्व

महत्व
Photo: प्रकर्ति का ये अनुपम , अद्भुत , और मनोहारी  द्रश्य देखकर 
दिल से  निकला :- ॐ हरि ॐ

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे शन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तुमा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Om Sarve Bhavantu SukhinahSarve Shantu Nir-Aamayaah |Sarve Bhadraanni PashyantuMaa Kashcid-Duhkha-Bhaag-Bhavet |Om Shaantih Shaantih Shaantih 
 
Meaning:
Om, May All become Happy,May All become free from Illness.May All see what is Auspicious,Let no one Suffer..........Om Peace, Peace, Peace.
 
 
 
चाँद चकित और मौन
हुआ दिनकर गौण
 हुई हतप्रभ प्रकृति
जलधि में छिपा कौन
प्राकृतिक मनोहारिता
दे रही जीवन दान 
पञ्च तत्व के  संगम का
 ऐसा दृश्य महान
लघु गुरु का सब भेद
हुआ आज अभेद
हर तत्व का महत्व 
बोले हर सन्देश  
 
 

पराकाष्ठा वेदन की !!!!

मित्रों ! यह कविता में श्री राघवेन्द्र अवस्थी जी की पोस्ट से प्ररित हो कर लिखी है जिसने उन्हों ने अपनी माँ की पीड़ा को अपने बच्चो का गंगा मैया द्वारा लील जाने पर व्यक्त किया है.......एक माँ का दर्द अपने बचों को खो कर कैसा होगा यही मैंने महसूस किया और उसे व्यक्त किया
पराकाष्ठा वेदन की !!!!

उफ ! वेदन की पराकाष्ठा
धीर हुआ जाता है मद्धम
रूदन थका पर चला निरंतर
फीके फीके आश्वासन है
धूमिल चिंतन और विचलित मन
व्याकुल हुई आस की चाहत
विचर रही है बेकल बेकल
पूरब से जो निकली धारा
बह जाती पश्चिम  में कल -कल 
व्यर्थ रहे अनुवाद विवादित
व्यर्थ हुआ अपनों का कलरव
व्यर्थ हुये  सब राग रागिनी
बस सुलग रहा वेदन का शव
बन बैठा मन मौन तपस्वी
किये धारण हठ-योग की मुद्रा
शिथिल शिला सा हुआ पड़ा तन
उफ !वेदन  की पराकाष्ठा