जल
जल ही जीवन है
विनाश भी जल है
जल कर जी जाए जो
क्या ऐसा भी कोई पल है ?
आँख से टपका तो जल था
खून जिगर का -तो जल था
विस्तृत नभ के आगोशों में
छिपा जो बादल -वह जल था
सूखे चश्मे -निर्झर झर
पल्लव पल्लव ढूंढे जल
तप्त पिपासित चातक नभ में
चोच उठाये -चाहे जल
बूँद बूँद की अभिलाषा में
संचित करता उर में जल
जल जल कर तन भस्म हुआ तो
सिंचित मन को करता जल