शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

waqt ki mhtta

वक़्त की महत्ता 

वक़्त की फैली लम्बी चादर
कटती  है जब धीरे धीरे
रेशे जैसा हर एक पल
फटता है तब धीरे धीरे
ज्ञान नहीं होता  तब हम को
टूट रहे पल के रेशों का
बना देते सन्दर्भ  बिगड़ते
सिहं तुला कन्या मेषों का
पकड़ नहीं पाते हम तब
तार तार से वक़्त के धागे
पीछे रह जाते तब दौड़ में
चाहे कितना भी जोर से भागें
रह जाती जब चादर आधी
और ना तन ढकने को काफ़ी
होती है तब खींचा-तानी
ना तुमने कही ना मैंने मानी
चादर वक़्त की ना फटने पाए
पल के रेशे  ना टूटें जाए
आने वाले हर एक पल में
आओ यह संकल्प दोहरायें

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

nav varsh mangalmay ho

नव वर्ष मंगल मय हो

हर सुबह आकर सरगम बनाये  नयी
मीठी तान गा कर रात सुलाए कोई
पूनम सा दिन हो महकती शाम हो
नियामतो की बख्शीश आठों याम हो
इरादे बुलंद हों   हौंसलें बुलंद हो  
साथ हो अपनों का  उड़ान स्वछंद हो
पंख अब फैलाओगे   , दूर उड़ जाओगे
क्षितिज की सीमा हो  आकाश अनंत हो  
सृजन हो नव  सपनों का आने वाले इस कल  में
सपने हो साकार सभी ,आने वाले हर पल में
नूतन आशा ,नूतन अभिलाषा और  बढे नव  हर्ष
नव रंग का मिश्रण हो  जीवन , मंगल मय हो नव वर्ष




do premi

दो प्रेमी

दोनों ही पागल प्रेमी थे
संग वक्त  गुजारा करते थे
जीवन के बदरंग पन्नो पर
रंग उतारा करते थे
संध्या की काली  घिरने से
उषा की लाली चढ़ने  तक
बिछी रेत की चादर पर
कुछ शब्द उभारा करते थे
सागर की बहती लहरों में
बनते -, मिटते थे रोज़ लेख
जीवन के बहते दरिया में
पर बदल ना पाए भाग्य रेख
दुनिया की बहती भाग-दौड़ में
साथ हमेशा से छूट गये
नाजुक मन से दोनों थे
दिल कांच की जैसे टूट गये

khwahish

ख्वाहिश

खतों -खितावत से ना मिटती है तेरे दीदार की ख्वाहिश
जी चाहता है कि अब तुझ को  आगोश में भर लें
और पी लें तेरी इन झुकी मस्त निगाहों के प्याले
बिन छुए मय को , खुद अपने को मदहोश कर लें
वादे पे तेरे हम सब्र किये जाते हैं ऐ साकी
डरते है कि कही तू वादा फरामोश ना कर ले
सजदे में झुका देंगे  सिर अपना तेरी मोहब्बत के आगे
याँ फिर वजूद  को हम अपने फ़रोश  ही कर लें

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

mohabbat

मोहब्बत

क्यों ना हो   गुमान यूं अपनी मोहब्बत का ऐ दोस्त
मोहब्बत करने वाले ही खाकसार हुआ करते है
यह हकीकत है कि  जिसने भी की अकीदत यहाँ
जमाने भर के पीकर  गम भी  आबाद हुआ करते हैं
कभी ख्वाब में भी ना गुज़रे पल एक भी जुदाई का
जुदा हो भी जाए तो भी मोहब्बत किया  करते हैं
मोहब्बत चीज़ क्या  है यह तुम  उनसे पूछो  ए दोस्त
जो दफ़न हो जाने के बाद भी मोहब्बत से जिया करते हैं

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

geet tumhare hain

गीत तुम्हारे है

कैसे कह दूं कि
मेरे गीतों में तुम ही बसे हो
कैसे कह दूं कि हर एक
हर्फ़ में अक्स है तेरा
कैसे कह दूं कि हर एक
 धुन में साज है तेरा
तुम से  ही तो गीत जवान हुए  है
गीत उसाँसे थे अब तक जो मैंने पाले
गीत प्यासे थे   अब तक जो  मैंने  रखे संभाले
हर गीत की चाहत में तुम चाहत बन कर आये
हर गीत की देहरी पर तुम आहट बन कर आये
यह गीत तुम्हारे है तुम से ही उपजे है
यह गीत वोह सारे हैं , करते तुम को सिजदे हैं

tum aaye to jeevan badla

तुम आए तो जीवन बदला

एक आग धधकती थी सीने में
ना शोला बनी , ना बुझी  कभी
एक चाह सी उठती थी मन में
ना दफ़न हुई,  ना दर्द बनी
एक नाम  उभरता था लब पर
जो सुना नहीं  , ना कहा कभी
अहसासों का दरिया चुप था 
अनुभव की लहर थी दबी दबी 
जी तो रहे थे ,पर जिन्दा कब थे 
साँसों की गति थी  थमी थमी
तुम आये तो जीवन बदला
पतझर थी, जो बहार बनी

yakeen

यकीन

कितना मिलते थे हम रोज़ ना जाने क्या हुआ
 बिछड़  गए अचानक  ,अक्सर सोचते है कि
नाम गर कभी आएगा  जुबान पर मेरा
तो क्या संभाल लोगे जिगर अपना?
रूबरू जब कभी होगा मेरा साया तुमसे
तो कर पायगे अलग वजूद अपना?
ना बदला होगा  तेरा वोह मुझ को दामन पकड़ कर बुलाना
ना बदला होगा मेरा वोह दामन झटक कर छुड़ाना
ना बदला होगा तेरा वोह नज़र से नज़र मिलाना
ना बदला होगा मेरा वोह तुम से नज़रे बचाना 
बात बात पर चहकना , इतराना, और रूठ जाना
ना बदला होगा तेरा वोह मुझ को यूं बुलाना
बिछड़ने के बाद भी है यह मुझ को यकीं
हम तुम कही दूर नहीं, बस आस-पास है  कहीं

रविवार, 26 दिसंबर 2010

kitaaben

किताबें

सब से अच्छा दोस्त है किताबें
न कुछ मांगती है
ना कुछ शिकायत करती हैं
अपने चाहने वालो को हमेशा देती है
मुंह फेर लो रूठती नहीं
पास चले जायो तो दुत्कारती नहीं
अज्ञानी का उपहास नहीं उड़ाती
बस हर दम अपने सब कुछ न्योछावर करने को उद्यत

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

Aasha ka aagman

आशा का आगमन

आने वाली हर सुबह को सलाम
उठने वाली हर लहर को सलाम
बहती पवन के कण-कण को सलाम
धरा के चक्र को सलाम
आती ऋतुओं का स्वागत है
हर नई कोंपल का सत्कार
टिम टिम तारे का स्वागत है
दूज के चाँद का सत्कार
आशा की चादर को ओढ़े
हर एक पल को नमस्कार
जीवन को रौशन करने वाले
हर एक दीप का है सत्कार
गहन निराशा की खोह से
प्रस्स्फुटित हुई आशा की किरने
प्राची, जल,थल,नभ,पाताल के
जर्रे- जर्रे को सलाम

phool sa vyktitv

फूल सा व्यक्तित्व

फूल  सा व्यक्तित्व है उसका
करता है आकर्षित सबको
 एक शूल चुबता है तुमको
तो क्या खुशबू खो देगा  ?
फूल तो आखिर फूल रहे गा
शीश चढाओ या ठुकराओ
कोमलता में सर्वोपरि है
चाहे कितने भी शूल गिनाओ
तुम चाहे इनका करो ना सिंचन
यह तो महक फैलाएगा
कर लो कितना भी  जीवन मंथन
ऐसा सौरभ कही ना मिल पायेगा

jaane wala chala gya

जाने वाला चला गया

जाने वाला चला गया
हर पल को चुरा कर चला गया
यादो में गुज़रे अब हर पल
हर पल को रुला कर चला गया
 किया था उसको रुखसत मैंने
कुछ मन से कुछ बेमन से
 जाने कौन ,यहाँ क्या था उसका
सारे घर को लेकर चला गया
मिलेगा कभी कहीं किसी रोज़
पूछेंगे उससे किस्सा- ए- दिल
कैसे काटे है उसने भी दिन
दिल यहाँ छोड़ के चला गया

jaadaa

जाड़ा ( सर्दी का मौसम )

कितना अच्छा था वोह जाड़ा
धुंध और कोहरे से लिपटा
मद्धम हो सूरज भी सिमटा 
गर्माहट  हर पल तरसता 
दिन भर बर्फाना  ठिठुरता
रात को आग का देता भाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा

कामकाज हो जाता सारा ठप्प
चाय के साथ बस होता गपशप
लम्बे कोट पहन सडको पर
हिम से खेले सब वृद्ध युवा जन
बड़े  उत्साह का एक  नगाड़ा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा

हम भी तब थे छोटे छोटे
पहन गरम दस्ताने , मौजे
माँ की नज़र बचा कर के
चढ़ जाते घर के परकोटे
देवदार से लम्बे हो कर
छूते सूरज का चौबारा
कितना अच्छा था वोह जाड़ा

virh

विरह
 जब पूनम की ज्योति से धुल कर
रजनी आँचल फैलाती है
जब पवन सुरीली बाँसुरिया
तरु पल्लव से बजवाती है
 प्रीत पिया के स्निग्ध स्पर्श  की
चाहत को अकुलाती है
 विहरन वेन गीत मिलन के
रात रात भर गाती है
ऐसे में प्रेमी विलग  मन
दर्द बटोरा करते हैं
शबनम के नन्हे कतरों से   ,
 शोलों को ठंडा करतें हैं

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

vaade to toota karte hain

वादे तो टूटा करते हैं

वादों  की बात क्या करते हो
वादे  टूटा ही करते है
कच्चे सपनो के महलों जैसे
टूट के बिखरा करते हैं
बिखरी किरमिच को चुनते समय
जब कंकर चुभते हाथों में
तब दर्द उभरता सीने में
और अश्रु बहते आँखों से
स्वर पीड़ा के मुखरित होते
जब दर्द पिघलता अनायास
दिल तो मोम है पिघले गा ही
टीस उठते है तब  पाषण

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

baat ki baat

बात की बात

बातों बातों में बात चली
बात की बात को लगी भली
फिर बातें बातों में होने  लगी
कुछ बातें रह गयी अनकही
सोचा मिलें तो बात करें
बात बात में सवाल करें
मुलाकात की बात हुई
बात करें जब रात हुई
पल में बीती लम्बी रात
बात बात में हुई ना बात
दिल की दिल में रह गई बात
अनबोली ना समझी बात

रविवार, 19 दिसंबर 2010

mamta ki janjeer

ममता की जंजीर

देख कर जुल्मो-सितम इस जगत   के
उठते  है  बवंडर तब इस शांत मन मे
मन का हारिल विरक्त  हो तब दूर नभ मे
 उड़ कर कही स्वयं से दूर जाना चाहता है
कैद  कर नहीं रख  पाती उसे सोने की दीवार
रोक नहीं पाती  किसी के चाहत के दीदार
बहला नहीं पाती उसे कोई  भी तक़रीर
सहला नहीं जाती किसी के  प्यार की तस्वीर
टूट जाते है सब  बंधन बस एक ही पल में
बाँध  पाती है उसे तो बस ममता की जंजीर

mujhe tum yaad karna

मुझे तुम याद करना

जब भी मुश्किल में तुम आओ 
मुझे तुम याद करना
स्थिति जब भी  प्रतिकूल पाओ
मुझे तुम याद करना
बन कर हल  हर प्रश्न का
बन कर  आऊँ गा मैं
बन कर ढाल हर मुसीबत के
समक्ष खड़ा  हो जाऊंगा मैं
तुम बन कर रहो 'नीरज'
इस जीवन के तरन ताल में
भंवर उठे कभी  जब  भी
तो बस जान लो इतना
झेलने को तूफ़ान
चट्टान बन जाऊं गा मैं
यह मत सोचो कि रिश्ता
 मेरा तुम से   चिर पुराना है
रहे है अजनबी ता उम्र
नहीं कोई फ़साना है
एक तार स्नेह का
मुझ को तुम से जोड़ता है
एक दीप तम का
जो हर दिशा को मोड़ता है
इसलिए बस बार इक
मैं बोलता हूँ
तुम तक पहुंची हर बला
को तोलता हूँ
और फिर कहता यही हूँ कि
 डगर हो अगर अनजान तो
मुझे तुम याद करना
लगे जब कठिन पंथ और काज
मुझे तुम याद करना

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

vishwas pyaar ka

विश्वास प्यार का

लेख हमने जो लिखे जीवन के पन्नो पर
दावा है मेरा कि तुम वह सब मिटा ना पायोगे
करोगे जितना भी जतन हमसे दूर जाने का
उतना ज्यादा तुम हमे पास अपने  पायोगे
लाख चाहे बंद करो तुम कान अपने
गीत मेरे भाव के दिल में गुंजाते पायोगे
तड़प उठोगे स्वयं को देख कर तन्हा
"प्यार कहते है किसे" तब स्वयं ही जान  जायोगे

dooriyaa

दूरियां

सृजन की तूलिका ने फिर गमक की तान छेड़ दी.
विरह की वेदना ने मिलन की हर आस भेद दी
उठे जब भी कदम तुम्हारी तरफ तुमसे मिलने को
इस जग के  लोगो ने इड़ा की झूठी शान   घेर दी
बढे अब फांसले कुछ इस तरह दरमियाँ दोनों के
कि साथ रह कर भी  प्रिया अजानी छाप बन गयी
ना समझे थे ना समझोगे तुम ऐ जहां वालो
दूरी बीच दोनों की तुम्हारी  नज़र की माप बन गयी



.

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

muskaan meri samptti

मुस्कान मेरी सम्पत्ति

सूरज का उगना
चंदा का छुपना
तारों का टिमटिमाना
ऋतुओं का चक्र
धरती का यूं घूमना
और घुमाना
नन्हे बीज का अंकुरित होना
सागर का नन्ही बूंदे बन कर
यूं उड़ जाना
बादल  बन कर धरती पर फिर बरस जाना
क्या यह सब प्रक्रिया है ?
एक रहस्य अनदेखा, अनबोला
जिसको हर मानव ने झेला
पाला पोसा और महसूसा
किया स्वीकार हर एक अजूबा
है असंभव बदलना स्वभाव नियति का
पर है स्वयं दाता वह मुस्कान अपनी का

rahsya jeevan ka

रहस्य जीवन का

जीवन को करीब से देखने की
हर कोशिश
मुझे जीवन से हर बार
कोसों दूर ले जाती है
और छोड़ देती है
एक ऐसी ऊँचाई पर
जहां से हर आदमी बौना नज़र आता है
सुख-दुःख ख़ुशी-गम के आवरण
झीने जान पड़ते हैं
मन को टटोलती हूँ
श्वसन को बटोरती हूँ
और फिर सोचती हूँ
जीवन एक रहस्य है-
इसे राज ही रहने दें.
जैसे सब बहते हैं
वैसे ही बहने दें.

Doshi kaun

दोषी कौन?

वृक्ष पर लटका पत्ता
पीला हुआ, झरा
और धरती पर गिरा

हवा के झोंको के साथ
इधर उधर उड़ा
और कही दूर जा पडा

विदम्भ्ना  कहो, या  कहो स्वभाव
दोष किसे दें ?

वृक्ष को!
जो पत्तों को बांध कर
रख नहीं पाया

हवा को!
जिसने पत्तों को
इधर-उधर उड़ाया

यां फिर पत्ते को!
जो जीवन भर
साथ दे ना पाया

जीवन में बहुत सारे सवाल हैं
जवाब कहीं नहीं है
 बस कहीं एक  समझौता है
कहीं कहीं ख़ुशी से
और
कहीं मन में मलाल है

Bargad Ka ped

बरगद का पेड़
गाँव के बाहर बरगद का पेड़
सर्दी गर्मी ,धूप और छाया
सदियों से वह सहता आया
बदलते हर मौसम की थपेड

हरा भरा वह वृक्ष सघन
गोद में जिसके बीता बचपन
संग में जिसके हुआ बड़ा
वह आज भी वहीं  अडिग खड़ा

पल- पल करके बरसो बीते
घूमा जग भर रीते-रीते
प्रतिकूल स्तिथि से जब भी घबराया
बूढ़े बरगद ने साहस बंधाया

गिर कर चड़ना और चढ़ कर गिरना
जीवन की है एक  एक कला
अंतिम चरण मंजिल पर धरना
जीवन सार है यही भला

yaachna

याचना

सौगंध तुम्हे सच कहना मुझसे
बात एक भी ना मन में रखना
जीवन की ढलती बेला में
कब तक पड़ेगा यूं सहना
मेरी अनसोयी रातों ने
तुमको भी तो जगाया होगा
मेरे दिल की आहों ने
तुम को भी तो तड़पाया होगा
अंतस में उमड़े दुःख के बादल
तुम को भी नम करते   होंगे
नयनों से छलके पानी की गागर
कोरों को गीला करते   होंगे
शून्य व्योम में भटक रहा हूँ
ना रह कर मौन निहारो मुझको
अनहत स्वर का भेद ना जानू
कुछ तो कहो, पुकारो मुझको

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

anubhav sparsh ka

अनुभव स्पर्श का

कोलाहल चंहु और
निस्तब्ध बना  पुर जोर
मधुर शब्द मौन ना

सिहरन भरा  स्पर्श्य
मंजुल मन अवश्य
व्यक्त हई कल्पना

जागे  सोया अभिलाष
अभिनंदित उल्लास
कुहुक उठी वेदना