गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

क्रांति

क्रांति

थक कर बैठ गयी हर आहट
हुई आहत जब मन की बैन
अविरल अश्रु धार बहे और
 व्यथित हुया इस मन का चैन

सूरज उदित हुया था कल भी
और किया था उषा पान
बिन आहट फीका अब सूरज
नही रूचे  अब खग वृंद गान

रहने दो अब मत सहलाओ
मत इसको आवाज़ लगाओ
राख हुई अब जो चिंगारी
मत उसमे शोला भड़कायो

होगी हरियाली जब  आहट
उठेंगे धीर हो कर अधीर
नस नस में भरेगा उत्साह
जन जन होगा क्रांतिवीर

व्योम दीप की शिखा जला लूँ
छाया घोर कुहास मिटा लूँ
आहत आहट का रीता पन
क्रांति युग का उदय गान है

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

आक्रोश

आक्रोश

 इक आक्रोश भरी आवाज़
यूँ ही दब कर रह गयी
भीड़ के गूंजते सन्नाटो में
और
आक्रोशित ,मुखर आवाज़
बड़ी बेबसी से देखती र्है
अपना
गूंजते सन्नाटो में गौण होना

लौट आती है पुन: 
टकरा कर कही पाहनो से
थकित रूदन कर सिसकती
सहती है कभी यूँ मौन होना

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

सूनेपन के वेदना

सूनेपन के वेदना

नयन बिछाऊ राह  निहारूं
मंज़िल मंज़िल तुझे पूकारूँ
थकित हुया यू विचर अकेला
उत्साहित था कभी अलबेला
मन ना क्षीण,ना क्षीण है काया
दुविधायों ने मॅन भरमाया
असमंजस से हुया अकेला
उत्साहित था कभी अलबेला
अब लौट भी आओ मन के मीत
हुया अधीर अब तेरा धीर
सूनेपन की कठिन वेदना
झेल ना पाएगा यह वीर

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

प्रदूषण

प्रदूषण
देवो की बांकी धरती पर
नरक का कोलाहल है छाया
धरणी के सुंदर आँचल पर
प्रदूषण ने वज्र गिराया
धूसरिस अमवा की डाली
पिक़ का पंचम है बौर्राया
सहमे सहमे किरीट पतंगे
खिलता मधुबन है कुह्म्लाया
घोर कुहास प्रदूषण का यह
छाया इस धरती पर जब जब
विचलित साँसे विचलित जीवन
विचलित मंडल विचलित जन जन
धरती की आँखो के आँसू
मोती बन जब झर झर झरते
तरु पल्लव हर डाली डाली
पीड़ा की ज्वाला में जलते
शिशिर बसंत सर्दी गर्मी सब
इसमे होम हुए जाते हैं
प्रकृति के कोमल हाथो में
मृत्यु दान दिए जाते हैं
मुझे बचा लो ! मुझे बचा लो!
सत्वर धरती करे पुकार
ओ इस जॅग के निर्माताओ
अब तो करो मेरा उद्धार

पगला मन

पगला मन

पा कर कभी जो तन्हा मुझ को
यादे संग मेरे   हँसती है
तब जाने यह मन क्यों  रोता है ?

सुरभित मधुर समीर कभी जब
बन वसंत छा जाती है
तब जाने यह मान क्यों रोता है

सघन रात में विकल दामिनी
जब आँचल छू जाती है
तब जाने यह मन क्यों रोता है

चैत मास की रजत चाँदनी
जब आँगन में बिछ जाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है

मन की बात छुपी जोमन  में
तड़प तड़प जब खुल जाती है
तब जाने   यह मन क्यो रोता है

बिरहन पा प्रीतम की पाँति
जब बोल बिरह के गाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है

पल का मिलना : बेअंत बिछड़ना
जब सांसो में घिर आता है
तब यह पगला मन रोता है

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

भ्रम मन का

भ्रम मन का

वक्त की दीवारों से
अब भी कभी कभी
अवसाद रिस्ता है
जो गीला कर देता है
आशा की चुनरी को
वक्त के आँगन से
अब भी कभी कभी
अवसाद बिखरता है
जो चुभ जाता है
आस के पैरो को
वक्त की देहरी पर
अब भी कभी कभी
साकल लगाता है
जो रोक देता है
आस की मुस्कान को
उषा की बेला में
जब  निहारती हूँ
वक्त के क्षिटीज़ को
अवसाद का काला रंग
मिल जाता है नभ में
और बना देता है
इक इंद्र धनुष
सतरंगी इंद्रधनुष
जो कर देता है
चटकीला अवसाद की
स्याही को !!!!!!

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

ठोकर जीवन की


ठोकर जीवन की

कदम अगर कही रूक जाते?
थोड़ी देर और सुस्ताते !!!!!!
चल देते कुछ देर ठहर यूं 
फिर उठ कर मंजिल को धाते.
ठोकर खा कर जो गिर जाता 
उसके तुम गिरना मत बोलो 
उठ कर फिर तब जो चल देता 
साहस के  तुम उसके तोलो 
ठोकर मन में हिम्मत भरती 
न सपनो से समझौता  करती 
दुखों का हर इक सुख में भी 
नाप तौल कर भाव है करती 

मूक तपस्वी

मूक तपस्वी

मुहं पर मौन 
मन में त्रिकोण 
सिर झुकाए 
बैठा है आज 
तीसरे कोने पर 
अपलक निहारता 
दोनों कोने 
जिस पर 
बैठे है हम -आप 
और सरकार 
उफ़! दोनों कोने 
कितने कमज़ोर 
बना ना पाए 
ताल मेल 
फ़ैल रहा 
शंका का जाल 
और मूक तपस्वी 
झूल रहा उस त्रिकोण 
के तीजे कोने पर 
दृद संकल्प ले 
कुछ करने को 
मर मिटने को 
ओ जनता अब 
जागो जागो 
अपने फ़र्ज़ -और 
हक़  को पहचानो 
इस मौन को 
आवाज़ बनाओ 
जाह्नवी का 
क़र्ज़ चुकाओ 

महज़ ख्याल



महज़ ख्याल 
मान लिया जिसे दिल ने अपना  तड़प कर 
वह सताता  भी रहे  चाहे बन कर सितमगर 
पा तन्हा, ख्यालो में  बन जाता हकीकत 
वे तस्सुवर में रहे या फिर  कही बुत बन कर 
ख्यालों में उठा  करते है चुपचाप समुन्दर 
ख्यालों में बना करते है माटी के कुछ घर 
ख्यालों को समझ आती है ख्याल की भाषा 
ख्यालों से ही जुड़ जाती है इक टूटी से आशा 
ख्याल का ख्याल ही दिल को बनाता है 
ख्याल का ख्याल  ही जज्बात जगाता है 
ख्याल महज़ ख्याल ही ना रह जाए 'नीरज '
ख्याल का ख्याल यह एहसास दिलाता है .
अमराई भी हँसे तो बस अपने ख्यालो की 
पुरवाई भी बहे तो बस  अपने ख्यालो की 
चलो ओढ़ ले चादर बस अपने ख्यालों की
जी लें यह बस  जिंदगी अपने ख्यालो की 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

एक़ ख्याल

एक़ ख्याल
साए की तरह दिन रात
चलता है मेरे साथ साथ
जागता है तब भी जब
मेरा शयन भी हो जाए
मुस्कुराता है तब भी जब
नयन आँसू कुछ गिरातें
रोता है मेरे साथ जब
लब कभी यूं मुस्कुरातें 
बरबस अपनी पीड़ा छुपातें
कर देता है सारा विश्व छोटा
कुंठा कभी जब मेरा कद घटाती
भर देता है फूल राहों में
असफलता जब काँटे बिछाती
वह इक तरुन्नम सा भर देता
सूने दिल में झंकार
वह इक इबादत सा सुन लेता
दूर से मेरी पुकार
आस  को प्रज्ज्वलित करता
श्वास को व्यवस्थित करता
रास्तों को नापता चल रहा
वो साथ मेरे
एक ख्याल

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

अवसाद



अवसाद

हुया द्रवित दुखित मन
पीड़ा की ज्वाला से
हुए होम सब प्रयत्न
क्षोभ के निवाला से
भीग गया अंतस सागर
फूट पडे अश्रु गागर
बिखर गये शब्द सब
वक़्त की गुबार संग
मौन हुई कविताएँ
मौन अभिव्यंजना
मौन अभिव्यक्तियाँ
मौन आत्म उक्तिया
अवसादों के काले बादल
उमड़ घूमड़ जब आते हैं
उत्साह हीन कर जाते जन को
इक चुप्पी दे जाते हैं
जब चेतन बन कर आता प्राण
मन में देता इक नयी जान
तब मौन का होता भसमसात
उच्चारित हो जाता पुन: राग

शब्द कण



शब्द कण

रजत नभ
निशि मन
नि:स्तब्ध
शब्द कण
सन सनन
पुर्वाई बंद
बुझतादिया
ज्योत मंद  
हर कतरा
झरे शब
बूँद बूँद
रिसे लब
प्राण गान
हुया रुदन
स्वर सुधा
आँसू मगन
नव चेतना
उठो उठो
नव रश्मियाँ
झोली भरो
निशा नभ
 रजत मन
 मुखरित हो
शब्द कण