रविवार, 26 मई 2013

तपिश

तपिश 


शाम के धुंधलके में 
पहाड़ी के पीछे 
छिपता हुआ सूर्य बिम्ब 
जैसे शर्मिंदा है 
अपनी दिनभर की 
उद्दंडता के लिए 
और पनाह मांग रहा है 
रात के आँचल से 
रजनी जैसे  समा लेती है 
हर गुनाह को अपने आँचल में 
 वैसे ही ढांप लिया है दिनकर को 
 और सूर्य बाट देख रहा है अगले दिन की 
किसी नटखट बालक की तरह 
फिर  करे वही  शैतानी 
और बिखरा दे अपनी तपिश 
चहुँ  ओर !! चहुँ ओर

शनिवार, 25 मई 2013

एहसास

एहसास 

केवल एहसास ही तो है जो जिन्दा रहता है ,अपर्वर्तनीये ...और  कुछ खो कर पाने की प्रबल इच्छा को जागृत करता है .
दो साल पहले अचानक एक दुर्घटना ने जीने के मायने बदल दिए . जीने का ढंग बदल गया . परिवर्तन कुछ इस तरह हुआ की सोच भी नहीं पाए कि समझौता करना है या स्वीकार .
लेकिन एहसास था की कुछ मानने  को तैयार नहीं था . संघर्ष किया और आज पुन्ह जब उगते सूरज के साथ आँखे खोली तो पाया कि एहसास ने फिर विजय पायी और पुन्ह जीवन को जीवंत कर दिया . 
बात बहुत छोटी सी है . खेल के मैदान में पैर मुढ जाने से घुटना क्षति ग्रस्त हुया. इलाज़ चलता रहा लकिन बार बार वाही चोट लगने के कारण चलने फिरने में  रूकावट बढ़ गयी .छोटा सा ऑपरेशन भी हो गया .लेकिन अब ऐसे लगने लगा था की शायद अब कभी जीवन में वो बात न आ पाए . दौड़ना भागना तो दूर  , चलना भो दूभर लगने लगा . चार महीने पहले बचों को चुनौती  दी की गर्मी के छुट्टी में में खेल के मैदान में मिलेंगे और मैच खेलेंगे (बास्केट बाल ) बस जैसे अपने आप से लड़ कर रोज़ अभ्यास करने लगी .एक एक कदम उठाना कितना पीड़ा जनक था हिम्मत भी टूट जाती थी कभी कभी ..लकिन एहसास था के एक दिन जीतना है 
और आज बचों के साथ मैच खेलने के लिए तैयार थॆ. आज यह महसूस हुआ की जो दर्द कभी मेरे जीवन का हिस्सा बन्ने जा रहा था वः सिर्फ घुटने के एक कोने में ही सिमट कर रह गया .
और में उन्मुक्त और पुन्ह एक उत्साहित जीवन की अधिकारिणी बन चुकी थी .



रविवार, 12 मई 2013

लेखन


लेखन 

मंच मेरा और कविता भी मेरी
पर कलम कहाँ  से लाऊँ वह
बोले मेरे अनबोले शब्दों को
वो  स्याः  कहाँ से पाऊँ मैं
गीत छंद मुक्तक और दोहे 
वाणी का बंधन भूल चुके
भाव चुनिन्दा छुप छुप  कर
नैनों के रस्ते फूट चुके
रीते वचन सुमंगल करदे
कैसे मन को  समझाऊँ मैं
पीडित रोदन को सोखित कर ले
 कोई  हर्षित शंख बजाऊं मैं 



मेरी माँ

 मेरी माँ 

कभी जब मन अंधकार में डूब जाता है , 
कभी जब तन थकन से  बोझिल हो जाता है 
कभी जब हिम्मत की नाव हिचकोले खाने लगती है 
तब तब माँ आती है और चुपके से झुके हुए कंधे पर 
अपना प्यार भरा हाथ रख देती है . नव चेतना भर देती है 
और पुन्ह जीने के बहुत से नये आयाम सामने रख देती है 
शत शत नमन माँ . शत शत  नमन !
माँ जो मर कर भी नहीं मरती ....माँ जो सदा अपने आत्मा का स्पर्श  बनाए रखती है ......माँ जो  इस दुनिया में नहीं है तब भी हर पल मेरे साथ है और ....