शनिवार, 30 अप्रैल 2011

ehsaas


एहसास 
कल तक जो वह  था अपना
वोह आज लगा बेगाना सा 
कल तक जो देखा था सपना 
वोह आज लगा बेमाना सा 
 दिवा स्वप्पन सा भ्रमित  जाल
चंदा चमके बिच तरन ताल 
छूने को हो लालायित मन 
हिलजुल लहरों में हो जाए गुम 
त्वरित बिजली  सा चकाचौंध 
बादल गर्जन में करे औंध 
 द्रुत गामिनी चमक चमक 
पल भर ही  में  हो जाए गौण  
वह सर्द हवाओं की सिहरन 
वह वर्षा की गीली फुहरण
वह गर्म हवाओं का जादू
हाँ ,मन हुआ था बेकाबू 
सुख दुःख के विरले संगम पर  
पाया था तत्पर हमने उसको   
वह सरल ह्रदय बेबाक वचन 
हर पल सहलाया था उसको 
कब आया था कब चला गया 
मन समझ ना पाया घटना क्रम 
हर पल को भरने वाला जो 
अब रिक्त कर गया यह जीवन 

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

oorjaayen jeevan ki


ऊर्जाएं जीवन की 


मन को 

उध्वेलित करती हैं
कामनाएं 
भ्रमित करती है 
भावनाएं 
स्पंदित  करती हैं 
संवेदनाएं 
आंदोलित करती है 
उपेक्षाए 
पीड़ित करती हैं 
अपेक्षाएं 
प्रताड़ित करती हैं 
आलोचनाएँ 


गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

Rukhsati

रुखसती 

ले लूँ  गर रुखसती मैं इस जहाँ से आज 
क्या करोगे याद  मुझको  तब भी  
या भूल जाओगे   किसी टूटे सितारे से  ?
 बिछड़  जाए  गर नदी अपने ही धारों से
 क्या बहोगे  तब भी  रवानी से 
या बिखर जाओगे किसी बिछड़े किनारों  से
धंस भी जाये गर धरा ,अपने ही बोझों से
क्या रहेगी तब भी सत्वर
याँ चटक जाये गी किसी उजड़े नजारों से
थम नहीं जाता चलन यह जीव का
बूँद दो आंसू बहेंगे  , फूल दो शव पर चढ़ेंगे ,
चंद जन फिक्रें कसेंगें , और फिर वह सब करेंगे
ढूँढने को अस्तित्व अपना इस जहां में
रूक के पल दो पल फिर आगे बढ़ेंगे


Aahat

आहट 

हर आहट में इक आहट का 
करती हूँ मैं बस इंतज़ार 
उस आहट की अकुलाहट में
हो जाती हूँ बेकरार 

'चल हट ' कहा फिर आहट ने
क्यों फिरती है बौराई सी 
यूं चौंक के मुझ को तकती हो 
कुछ पगली सी सौदाई  सी 

उस आहट में है श्वास मेरी 
उस आहट से में जुडी भली 
उस आहट से ही दम निकले 
उस आहट में है ज्योत मेरी 

आहत कर जाती है आहट
जब दस्तक दे कर छुप जाती 
अनहत नाद में वह आहट 
मनस पटल पर छा जाती 

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

Rab se Dua

रब से दुआ

शामिल रहो मेरी हर सोच में तुम
यह रब से दुआ  करता हूँ
हासिल रहो हर पल मुझे तुम
यह रब से दुआ  करता हूँ
बढ़ जाती है चाहतें और भी बिछड़ जाने के बाद
बस इतनी ही रहे चाहतें मेरी
यह रब से दुआ करता हूँ
बिखर जाती है दुनिया मेरी तुम से बिछड़  जाने के बाद
बस सिमटी रहे यह दुनिया मेरी
यह रब से दुआ करता हूँ






Antheen.....

अंतहीन ........
यह जीवन
 एक अंत हीन यात्रा
जहा मन अपने से अलग हो
ढूंढता है
अपने अस्तित्व को
भटकता रहता है
व्योम में
वायुमंडल में
जल थल नभ में
कोशिश करता है
छूने को हर एक पल
और हर पल गुज़र जाता है 
छू कर मन को
और
 यह विचित्र मन
ढूंढता रहता है
अस्तित्व अपना
इस अंतहीन यात्रा में.........

रविवार, 17 अप्रैल 2011

aakhiri slaam

आखिरी सलाम

शायद यह मेरा आखिरी सलाम होगा
देख लो आकर वही अकेले खड़े हुए हैं हम
राह पर तेरे पैरों का कोई ना निशान होगा
खुलेंगे जब भी यह लब बुलाने के लिए
इन लबों पर अब तेरा ना नाम होगा
आह  अब भी उठे गी इस दिल में ए दोस्त
उस आह में अब तेरा ना पयाम  होगा
छोड़ कर मुझको इस कदर यूं दूर जाने वाले 
तेरे अफ़साने में कही मेरा भी नाम होगा
शायद यह मेरा आखिरी सलाम होगा
 

Pukar

पुकार
उमड़ पडा फिर सैलाब दर्द का
सालों तक जिसको था समेटे रखा 
उघड गया फिर  हर इक जख्म
सालो तक जिसे था  ढके रखा
मशवरा दोस्त का भी ना सहला सका
आज कुछ भी इस दिल को मना ना सका 
बहने दो इन आँखों से अब और आंसू बहने दो
बस कहो मत कुछ  मुझे यूं ही रहने दो
तन्हाईओं को लगा लेंगे फिर हम गले अपने
गुमनामी में ही जी लेंगे बिसरा  देंगे वो सब सपने
नहीं है अब हिम्मत की इस गम से अब लड़ जाऊं मैं
नहीं है अब चाहत की तुम बिन इस जग को आजमाऊँ मैं
आजाओ बार इक,बस इक बार आजाओ तुम
अकेला जी चुका बहुत बस माँ अब अपने आँचल में छुपाओ तुम

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

Bachpan

बचपन
नटखट होता है यह बचपन
उन्मुक्त मचलता है यह बचपन
सौ सौ अंकुश का बंधन है
फिर भी है ना चिंतित बचपन
हर आदेश का पालन करता
अवहेलना यह कभी ना करता
सदाचार का जीवन जीता
सच्चा भोला प्यारा बचपन
हर पल जीता नव उमंग से
कितना सयाना है यह बचपन
करने को अपनी  शांत उत्सुकता
हर अध्भुत रचना छूता बचपन
रूठे तो झट मन जाता  बचपन
रोये तो झट हँसता बचपन
हर भ्रम जाल से कोसो दूर
निश्चल मन महकाता बचपन
बात समझ लो तुम भी ए मन
बचपन होता है हर पल में
रहो जीवन के किसी मोड़ पर
न खोना बचपन को किसी क्षण






Kaal

काल
नन्ही सी किलकारी के संग
झूमता गाता आता काल
जीवन की चढ़ती बेला में
प्रात: सुहानी लाता काल
तरुण हुआ जाता जब जीवन
उत्श्रीन्ख्ल हो जाता काल
आशा की अरुणाई लेकर
सुंदर खवाब सजाता काल
नव चेतन तरु पल्लव जैसा
अंग अंग महकाता काल
यौवन के उचतम शिखरों को
जब भी छू कर आता काल
दिन ढल जाता होती शाम
जीवन को भी मिलता आराम
इक चक्र को करके मुक्त
फिर नया चक्र दोहराता काल
उषा से रजनी बेला तक
काल चक्र में घूमे काल
जीवन से मृत्यु तक भिन्नित
परिवेशों में घूमे काल

garmi

गर्मी
भीषण गर्मी की गर्म दुपहरी
गर्म हवा झुलसाती है तन 
फिरती है अकुलाती छाया
ताप व्याधि से व्याकुल मन
विह्ल हुए सब विहग वृन्द
कीट पतंगे जल जल जाते
तप्त वेदना से पीड़ित हो कर
 नर जन शीतल सांस चाहते
आग उगलता है दिनकर
आग निगलती सत्वर धरती
अग्नि के इस आदान प्रदान में
कष्ट भोगते हैं सब क्योंकर

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

pyaar khuda ki bandgi hai

प्यार खुदा की बंदगी है !!

बेचैन बहुत हैं मिलने को
यह बात समझते हो तुम भी
मिलने को रोज़  तडपते हो
यह राज छुपाते हो तुम भी
रूक जाती है धड़कन दिल की
मेरे  कदमो की आहट से
हो जाती है अपलक नज़र 
मेरे  आने की चाहत से
मेरी चाहत में कितना दम है
यह रोज़ परखते हो तुम भी
प्यार के मोती गिनने  को
कागज़ पर लिखते हो तुम भी
चलो आओ फिर इकरार करें
इस चाहत का इज़हार करें
यह प्यार खुदा की बंदगी है
इस बंदगी का गलहार करें

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

kuch kho gya hamara

कुछ खो गया हमारा

गुजर गयी  रात करके तारा -तारा
रिसते रहे जख्म दर्द ना हुआ गवारा
आजमाईश में ही सारा  बीत गया वक़्त  
बहते रहे अश्क ,वह ना हुआ  हमारा
जान कर भी वोह ना जान सका हम को
जान  बने ना अपना मेहमान बनाया हम को
जानने की हसरत में  बीत गया वक़्त
ना हमनफस ना हम सुखन वह  हुआ हमारा
दस्तके लौट जाती है अब देहरी पर आते ही 
बहारें मुह चुराती हैं अब गुलशन के खिलते ही
हार गये फिर हम यह दिल की बाजी भी
मिला सब कुछ जहां में ,पर  कुछ खो गया हमारा

रविवार, 10 अप्रैल 2011

haare ko harinaam

हारे को हरिनाम

हर तरफ निराशा थी मन बड़ा  हताश था . तरह तरह की आशंकाएं जन्म लेती और दम तोडती थी. आशा थक हार कर किसी कोने में जा कर सुप्त अवस्था में बैठ गई थी निकलने का कोई छोर सूझ नहीं रहा था.ऐसे मुसीबत के समय में भगवान का रूप माँ या मित्र के रूप में  उभर कर आता है . माँ को गुज़रे चार बरस हो गये . इसलिय मित्र का द्वार खटखटाया .बड़े धैर्य से मित्र ने भी अपना कीमती वक़्त निकल कर समय की मांग देखते और मेरी हालत देखते हुए भरपूर सहयोग दिया और मुसीबत के हर पहलु के प्रशन का हल दिया .लेकिन मन अपने ही प्रशन जाल में उलझा रहा और दिए गए हर प्रशन के हल में उलझता चला गया . काफ़ी वक़्त हो गया था ऑफिस बंद हो चुके थे . घर तो आना ही था हम भी घर आ गये. नवरात्र के व्रत और हरी नाम की अखंड ज्योत और हरी का आह्वान कर के राम चरितमानस का नव परायण का पाठ रखा हुआ था .उस दिन का पाठ अधुरा था . इसलिए हाथ मुख धो कर जब रात के करीब ११ बजे पाठ करने बैठी तो निद्रा देवी ने अपना अधिकार जमाना शुरू किया .भजति और निद्रा की जंग के बीच निद्रा देवी की जीत हुई. और राम चरित मनस जी को हाथ जोड़ कर और यह कह कर कि कल पूर्ती कर लेंगे , निद्रा अंक में समाना जरूरी है क्योंकि सुबह की आवश्यक बैठक के लिए तरोताज़ा होना जरूरी है और फिर सोते सोते इसी मजबूरी की भक्ति में कोई आनंद नहीं आ रहा इसलिए रोक देना जरूरी है .हरिनाम के प्रज्जवलित अखंड दीप में घी के दो चम्मच डाल कर निद्रा के अंक में खो गई.उषाकाल में जब पुनह मदिर में जा कर बैठी तो आश्चर्य की कोई सीमा ना थी. अखंड दीप जल कर भस्म हो चुका था . आशंकाएं और विकसित हो गई. भावनाओं पर काबू पा कर दीप पुनह प्रज्जवलित किया . छूट गया पाठ पूरा किया .और दफ्तर में होने वाली खास मीटिंग के बारे में ही सोच कर घर से निकल गयी.इतनी सहज और अप्रत्याशित ढंग से मीटिंग निपट गयी और सब कुछ मेरे अनुसार ही हुआ. अब बहुत प्रसन्न थी .अब एहसास होने लगा की ठाकुर जी स्वयं आ कर मेरे सारथि बन गये थे. मित्र के रूप में वह थे अखंड दीप के एकाएक भस्म हो जाने के ढंग से उन्होंने अपने आगमन की सूचन दी थी. अब रोम रोम सिहर गया . उनका साथ इस तरह से मिलेगा कभी इसका अनुमान भी नहीं लगाया था . मित्रे से सारी चटना का वर्णन किया . पुनह उकसे पाच पहुँच कर उसके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया .घर आ कर उनकी उपस्थिति का एहसास बार बार किया तो मन रोमांचित हो गया .
अब हर तरफ आशा ही आशा है.
सच है हारे को हरिनाम
अब हर तरफ आशा ही आशा है.
सच है हारे को हरिनाम

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

अनुराग तेरा है मेरा जीवन

 अनुराग तेरा है मेरा जीवन


सात सुरों का संगम जीवन
दुर्गम और सुगम है जीवन
आश निराश के दो पालो के
जीत हार में झूले जीवन
गिर जाता तो चढ़ता जीवन
चढ़ कर और फिसलता जीवन
गिरने और चढ़ने की धुन में
पल पल यूं सरकता जीवन
कढी  धूप में  चमके जीवन
स्वेद बहा कर झूमे जीवन
विविध धारा के रस में डूबा
नव उल्लास से भीगा जीवन
साँसे मेरी, है मेरा जीवन
आहे  मेरी,  है मेरा जीवन
राग मेरा है ,मेरा जीवन
अनुराग तेरा है मेरा जीवन