गर्मी
भीषण गर्मी की गर्म दुपहरी
गर्म हवा झुलसाती है तन
फिरती है अकुलाती छाया
ताप व्याधि से व्याकुल मन
विह्ल हुए सब विहग वृन्द
कीट पतंगे जल जल जाते
तप्त वेदना से पीड़ित हो कर
नर जन शीतल सांस चाहते
आग उगलता है दिनकर
आग निगलती सत्वर धरती
अग्नि के इस आदान प्रदान में
कष्ट भोगते हैं सब क्योंकर
भीषण गर्मी की गर्म दुपहरी
गर्म हवा झुलसाती है तन
फिरती है अकुलाती छाया
ताप व्याधि से व्याकुल मन
विह्ल हुए सब विहग वृन्द
कीट पतंगे जल जल जाते
तप्त वेदना से पीड़ित हो कर
नर जन शीतल सांस चाहते
आग उगलता है दिनकर
आग निगलती सत्वर धरती
अग्नि के इस आदान प्रदान में
कष्ट भोगते हैं सब क्योंकर