शनिवार, 16 अप्रैल 2011

garmi

गर्मी
भीषण गर्मी की गर्म दुपहरी
गर्म हवा झुलसाती है तन 
फिरती है अकुलाती छाया
ताप व्याधि से व्याकुल मन
विह्ल हुए सब विहग वृन्द
कीट पतंगे जल जल जाते
तप्त वेदना से पीड़ित हो कर
 नर जन शीतल सांस चाहते
आग उगलता है दिनकर
आग निगलती सत्वर धरती
अग्नि के इस आदान प्रदान में
कष्ट भोगते हैं सब क्योंकर