आहट
हर आहट में इक आहट का
करती हूँ मैं बस इंतज़ार
उस आहट की अकुलाहट में
हो जाती हूँ बेकरार
'चल हट ' कहा फिर आहट ने
क्यों फिरती है बौराई सी
यूं चौंक के मुझ को तकती हो
कुछ पगली सी सौदाई सी
उस आहट में है श्वास मेरी
उस आहट से में जुडी भली
उस आहट से ही दम निकले
उस आहट में है ज्योत मेरी
आहत कर जाती है आहट
जब दस्तक दे कर छुप जाती
अनहत नाद में वह आहट
मनस पटल पर छा जाती