मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

 

घना अँधेरा पथ पर छाया 

जीवन सूखा  रूख़ मुरझाया 

आशा की ज्योति  फीकी सी 

दिखता सब कुछ  अन सुलझाया 

भीतर कृष्णा लुप्त  हुआ है 

जीवन मन्त्र सुप्त  हुआ है 

कण -कण जैसे ढूंढ रहा हो 

निर्जन चारों व्याप्त हुआ है 

निशिता की जीवन बेला है 

संपन्न कहाँ सब काज हुए है ?

ज्ञान ध्यान सब धूमिल करता 

संशय, दुविधा, व्याप्त हुए है. 

ओ गिरिधर ! ओ नटवर नागर 

ज्योति बिम्ब हे तेजपुंज 

नईया लहरों में अटकी है 

हाथ पकड़ कर पार लगाओ 



माँ है एक, सुधा सी जो

आशीष रस पान कराती जो

कर दूर अंधेरा जीवन का

पग पग दीप जलाती जो

कोईं भेद नही अंतर्मन में

हर जन पर प्रेम लुटाती जो

सुधियों में छोडे छाप अमिट

मुक्त हास बिखराती जो

अब गोलोक को गमन किया

मुक्त हुयी हर बंधन से

युग युग तक अमर रहो माँ तुम

रहो प्रेम सुधा बरसाती तुम