रविवार, 25 मार्च 2012

मन की मर्यादा

मन की  मर्यादा
दोस्त दोस्ती और दोस्तों का प्यार ,इन रिश्तो में मायनों की व्याख्या कुछ धुंधली सी होने लगी है .
अभी दफ्तर में हूँ बाद में बात करते हैं.अभी घर में हूँ बाद में बात करते हैं
तो वह बाद आना ही क्यों है जिस को हम सब जगह से छुपा कर रखना चाहते हैं
मित्रता क्या केवल रास्तों की है ?
वक्त के बहाव में कुछ उलझे हुये  जज्बातों की है ?
या फिर उमड़ते विकृत , याँ झंकृत ख्यालातों की है ?
झुझला उठते है प्रशन स्वयं , उत्तर  डरे डरे से हैं
मौन विवादित जिह्वा पर आने को रुके रुके से हैं
स्वीकार करे ना खुल कर जो ,उन रिश्तों का औचित्य है क्या
जग की मर्यादा से भारी मन , मन की  मर्यादा के  मान का क्या ?
रिश्तों में छुपता है उजला पन , उजला धूमिल  निर्ममता से
गर वक्त मिले तो अपना पन ,वरना अनजान अस्थिरता से
क्यों मन अपनाए ऐसे रिश्ते क्यों स्वीकार करे इस जड़ता को
क्यों छिन्न करे मन के सत को ,पा भेद विभेद के चक्रों को

गुरुवार, 15 मार्च 2012

मन का अधिकारी !!

मन का अधिकारी !!
 
वह  मेरे मन का अधिकारी  !!
अठखेली करता ,बाल सुगम
शीतलता भरता ,चाँद अगम
क्रुद्ध क्षोभ मनस ज्वाला  को
ज्योतित करता सहज सुलभ
वह  मेरे मन का अधिकारी !!
वह चाहे तो वज्र गिरा दे
वह चाहे तो तमस मिटा दे
तनिक इशारा पा कर मुझसे
चाहे तो हर ताप मिटा दे
वह मेरे मन का अधिकारी !!
सोम शुक्र और अरुण वरुण
सब  ग्रह भरते   उसका पानी
बन कर दिग्गज  हर दिशी में
करता है  जो उसने ठानी
काल चक्र भी बंध जाता
जब चक्र कही उसका चलता
लोक तीन अचंभित हो कर
देखे उसकी मनमानी
वह बाल हठी,वह स्वधर्मी
वह चंचलता का साकार बिम्ब
नन्हा बालक मेरे मन का
करता उर्वर कर्तव्य डिम्ब
वह घोर निराशा में आशा
करे  उत्साहित जब मैं उत्साह हीन
जीवन के रूखे मरुथल को
पल में करता वह जीर्ण -,क्षीण
वह मेरा मन का अधिकारी
मेरे मन का नन्हा बालक
मेरे जीवन का अधिकारी 
जीवन की बुझी राख में भी 
भरता नव चेतन चिंगारी  

गमन

गमन
व्यथित तार वीणा के
हुए हौले झंकृत
कराहता रहा विश्व  
पीड़ा के गम  से
मधुर सेज सपन  के
विक्षिप्त हुए यूं  
डसने  लगे कूल  
जैसे नाग फन से
उठे तुम दिल से क्या
उठ गया जहां यह
धधक धधक मचे यहाँ
शूल खिले मन के
आये थे तो चुप्पी थी 
जाने का कोलाहल 
नीड़ त्रिन बिखर गये
कैसा  था तेरा गमन ?

चुलबुला जीवन

चुलबुला जीवन
फ़क्त एक जीवन
चुलबुला सा  जीवन
बुझने लगा ज्यों
टूटा हो दीपक
चहक गूंजती सी
महक फूलती सी
साँसों की  मौजों  में
भीगा  सा जीवन 
कभी वादियों में
कभी बीहड़ों में
कभी तटनियों में
कभी जोहड़ों में
अपने ही वादों से
जूझता सा जीवन
झोंका पवन सा
मूंदता नयन सा
उठता गगन सा
गिरता अयन सा
अट्टालिकायों में  
अटका सा जीवन
मलिन तेज़ सूरज का  
जलन शीत चंदा का
सूखा यह बादल सा
रूखा यह आँचल सा
सत्वर सी  धरती पर
हुआ मूक बधिर जीवन
फकत एक जीवन
चुलबुल सा जीवन
चुलबुल सा जीवन !!!

मेरा साया

मेरा साया
मिलना मेरा मुझे से  कुछ ऐसे 
जैसे हाशियों पर लिखी इबारते
होती महत्वपूर्ण कभी जो 
लेकिन वक्त के साथ साथ
खो देती है अपना अस्तित्व 
कनखियों से झांकना मेरा वो ,मुझको 
जैसे बुलाता है कोई छिप कर मुझको 
दबे पाँव चल कर रुकना अचानक 
करता है हैरान  मेरा तस्सुवर 
अजब शय है यह मेरा भी  साया 
वक्त के दरिया ने खूब बहाया 
जीवन की पुस्तक के पन्ने खुले जो 
हर हाशिये पे इबारत सा पाया   

गुरुवार, 8 मार्च 2012

असमंजस

असमंजस

पेशानी पर थी जो परेशानी
वो कह डाली तुमने जुबानी
तड़प उठता था सुन कर दिल
सहला दे दुःख यह फिर ठानी
बढ़ते हाथ यह रूक रूक जाते
बडबोले शब्द यूं बुद बुद करते
स्पर्श मात्र की चाह जगा कर
मुखर मौन अवलोकन करते
किन जजबो में जकड़ा है  मन
किन रीतों में उलझा है  मन
पीड़ित होता तेरे हर दर्द से
नावाकिफ सा ढोंग करे मन
हैरान शब्द  और मुक्तक हतप्रभ
बेबस मौन है असमंजस में
रफ्ता रफ्ता व्यथा बढ़ी है
सीमा चरम है असमंजस में
असमंजस में असमंजस है
चयन करू मैं  बोलो किसका
तोड़ गिराऊँ  सारी रस्मे
यां तोड़ निभाऊं  सारी रस्मे


बुधवार, 7 मार्च 2012

बंधन यह मेरा और तुम्हारा

बंधन यह मेरा और तुम्हारा

बंधन यह मेरा और तुम्हारा
जैसे क्षितिज का एक किनारा
दूर रहते है तो हर क्षण मिलते
पास आते ही  पग ठिठकते
कुछ झिझकते , कुछ तडपते
खामोशी जब छा जाती है तो
मन ही मन में बाते करते
बंधन यह दिल का कुछ ऐसा
नयनो में बसते आंसू जैसा
रहे बहता हर हर पल जब यह
आहें नम ही करता है
 गर सूख जाए यह जब भी
दिल अन्दर से   रोता है
बंधन यह मेरा और तुम्हारा
आसावरी की  सरगम सा प्यारा
बजता बस यह रात अँधेरे
छुप जाता  यह अरुण  स्वरे
बंधन  यह मेरा और तुम्हारा '
 मुस्काता   मधुबन यह सारा
स्नेहसिक्त कुसुमो से सज्जित
सुरभित आशा ने संचारा
बंधन यह मेरा और तुम्हारा
 

रविवार, 4 मार्च 2012

बस एक

बस एक

विशाल काये हुआ है पर्वत  .लेकिन उसका शिखर एक
विस्तृत दरिया बहता जाए  लेकिन उसका उद्गम एक
फूलों से भरा है उपवन ,लेकिन उसका माली एक
रत्नों से भर रहे भंडारे ,लेकिन लाल चमकता एक
सौरमंडल में कितने तारे लेकिन जीवन दाता एक
जंगल में है कितने प्राणी लेकिन सिंह दहाड़े एक
उन्नत पथ पर कदम बढे तो क्यों मन दुविधायों में डूबे
दुविधाओं के पंकिल सर में ,मुस्काता बस नीरज एक