गुरुवार, 15 मार्च 2012

मन का अधिकारी !!

मन का अधिकारी !!
 
वह  मेरे मन का अधिकारी  !!
अठखेली करता ,बाल सुगम
शीतलता भरता ,चाँद अगम
क्रुद्ध क्षोभ मनस ज्वाला  को
ज्योतित करता सहज सुलभ
वह  मेरे मन का अधिकारी !!
वह चाहे तो वज्र गिरा दे
वह चाहे तो तमस मिटा दे
तनिक इशारा पा कर मुझसे
चाहे तो हर ताप मिटा दे
वह मेरे मन का अधिकारी !!
सोम शुक्र और अरुण वरुण
सब  ग्रह भरते   उसका पानी
बन कर दिग्गज  हर दिशी में
करता है  जो उसने ठानी
काल चक्र भी बंध जाता
जब चक्र कही उसका चलता
लोक तीन अचंभित हो कर
देखे उसकी मनमानी
वह बाल हठी,वह स्वधर्मी
वह चंचलता का साकार बिम्ब
नन्हा बालक मेरे मन का
करता उर्वर कर्तव्य डिम्ब
वह घोर निराशा में आशा
करे  उत्साहित जब मैं उत्साह हीन
जीवन के रूखे मरुथल को
पल में करता वह जीर्ण -,क्षीण
वह मेरा मन का अधिकारी
मेरे मन का नन्हा बालक
मेरे जीवन का अधिकारी 
जीवन की बुझी राख में भी 
भरता नव चेतन चिंगारी