शनिवार, 19 दिसंबर 2015

वर्ष २०१५

वर्ष २०१५


वक्त बहे जाता है यारो
यादें अनुपम छोड़ कर
पलट कभी यह फिर न आये
मिलने किसी भी मोड़  पर
आज अभी है ,आज सभी है
जी बस  तुम जी भर कर
कहां गया ,कब आएगा
तज दो व्यर्थ का चिंतन
पल पल हाथ में है तेरे
जी लो बस तुम जे भर कर


नियति


नियति 

हार को हार न जाना मैंने 
प्यार को वार न माना मैंने 
उत्कंठा जो जगे तो तब भी 
क्या  कर लोगे स्वीकार 

जीवन क्या है, कोरा तप है 
सुख दुःख छाया धूप  का मिश्रण 
सम भावों से करता आया 
जिजिवषा का अंगीकार 

पल प्रति पल जीवन की आशा 
व्याकुल अद्भुत मन अभिलाषा 
प्राकृत अनुपम संगम से उत्पन 
प्रकृति का उपकार  

सार समय का जाना मैंने 
जीवन जीत है माना मैंने 
रोम रोम में व्याप्त हुआ जब 
रिक्तता का यह उपहार 


अंदाज़ निराला है


वाह रे दोस्त !,तेरा अंदाज़ निराला है
जाने कितने गमो को  सीने में पाला  है

मुस्कानी धागों के वस्त्र बनाता है
जगह जगह  दर्दो पे  पैबंद लगाता  है
दुखों के कैकटस उगा कर मन में
चेहरे पे जूही के फूल खिलाता है

वाह रे दोस्त !,तेरा अंदाज़ निराला है
जाने कितने गमो को  सीने में पाला  है

अस्मानी  रूहों के शख्स बनाता है
तरह तरह नामो के साथ बिठाता है
एक  नाम जो उसकी सांसो में बसा है
हर रूह को उसके साथ मिलाता है

वाह रे दोस्त !,तेरा अंदाज़ निराला है
जाने कितने गमो को  सीने में पाला  है

कशिश


कशिश 

कुछ थी कशिश 
बाकी अभी 
जो बर्फ सी 
जम जाती कभी 
कुछ नमी 
नम कोरों से 
बह कर गर्त 
ले जाती सभी। 

एक कशिश 
प्रयत्क्ष है 
जो गुप्त थी 
एक कशिश 
अवयकत है जो 
व्यकत थी 
एक कशिश 
जो घूमती थी 
दर -ब -दर 
वह कशिश 
स्तब्ध हो 
पुकारती है 

कल भी थी 
कल भी होगी 
कर्ज फर्ज का 
उतारती है 





रविवार, 13 दिसंबर 2015

मित्र के लिए


अपने मित्र आग्रह पर , मित्र के लिए

नूतन से

सुबह  की पहली किरण सी तुम
हमेशा की तरह सुनहरी
अपनी आभ से रौशन करती
मित्र ,तुम कनक समान
पूर्ण पोषित हो..
हर पल एक हर मोती को
गूँथ  लेने को तत्पर
सार्थक करते अपने नाम को
कुछ नूतन करने को उद्यत

जोड़ दिया हर बंधन तुमने
पिरो दिया हर मनका तुमने
तिनका -तिनका जोड़ धरा पर
नीड नया बुन दिया है तुमने