शनिवार, 19 दिसंबर 2015

नियति


नियति 

हार को हार न जाना मैंने 
प्यार को वार न माना मैंने 
उत्कंठा जो जगे तो तब भी 
क्या  कर लोगे स्वीकार 

जीवन क्या है, कोरा तप है 
सुख दुःख छाया धूप  का मिश्रण 
सम भावों से करता आया 
जिजिवषा का अंगीकार 

पल प्रति पल जीवन की आशा 
व्याकुल अद्भुत मन अभिलाषा 
प्राकृत अनुपम संगम से उत्पन 
प्रकृति का उपकार  

सार समय का जाना मैंने 
जीवन जीत है माना मैंने 
रोम रोम में व्याप्त हुआ जब 
रिक्तता का यह उपहार