गुरुवार, 31 मार्च 2011

khwaahishen

khwaahishen 
अच्छा लगता है तुम से मिल कर बिछड़ जाना 
संग बिताए लम्हों की   यादें संजो कर लाना 
रफ्ता रफ्ता तन्हाई में गुज़रती  है वक्त की  घड़ियाँ 
तब वक्त की तस्वीरों के शीशे में सब सजाते जाना 
तन्हाईओं में करते रहना  इकरार-ए- इश्क 
जब हो मिलना तो फिर यूं सब से  मुकर जाना  
फांसले दरम्यान मेरे तुम्हारे  जो बने बैठे है 
हो जाएँ ख़त्म ,यह ख्वहाहिशें सजाते जाना  जाना

बुधवार, 30 मार्च 2011

Dil ka sabab

 दिल का सबब 

तुम क्या जानो दिल को लगाने का सबब 
तुम क्या जानो दिल को मनाने का सबब 
इन्तहा प्यार की तुम क्या जानो
क्या जाने तुम जीत कर हार जाने का सबब
दिल दिल ही न होता गर  यूं न लगाया होता
मिट ही जाते जख्म गर यूं न सताया होता
बन कर राख सुलगती है जो दिन रात इस दिल में
हो जाती बर्फ गर इस को न दहकाया होता
तो चलो बार एक तुम भी लगा लो दिल को
दे अगर  प्रीत कोई अपना बना लो उसको
दिल के बदले दिल का मोल बना रखा है
करे जो कद्र दिल की ,दिल में बसा लो उसको

Aah

आह !
रोया बहुत है आज दिल उसे याद करके
वोह भी निकला ज़ालिम ज़माने जैसा
रखा था संभाले  जिसे हमने ता उम्र
वोह बिक गया बाज़ार में  रसाले जैसा
दिल में रहने  का सलीका भी न आया उसको
छोड़ गया इस दिल को ,सूने वीराने जैसा
मिट ही जायेंगे हम ,यादें भी मिट जायेंगी
वोह रोयेगा खुद भी  यूं हम को रूलाने जैसा

jeeteng ham

जीतेंगे हम 

"जीतेगें हम "  सोचा  हम सब ने 
"जीतेंगे हम"  माना   हम सब ने 
"जीतेंगे हम ' कहा  मिल हम सबने 
जीतेंगे हम '  चाह कर खेला हम सब ने 
मिल जाती है मंजिल गर हम चाहे
झुक जाती मुश्किल गर हम चाहे 
सब मिल कर जब साथ चले तो 
जुट जाती है शक्ति गर हम चाहें 
आओ फिर भारत को स्वर्ग बनादे 
संघे शक्ति युगे युगे ,की धूम मचादे 
सोने की चिड़िया यह धरती 
इसका परचम फिर से लहरा दे

mrigtrishna ya ytharth

  मृगतृष्णा या यथार्थ

दस बजने को थे. सब छात्र परीक्षा केंद्र में जा जा चुके थे . उसकी बेटी भी बार बार अन्दर जाने के लिए आतुर हो रही थी क्योकि समय हो चुका था . लकिन वह थी आज उसे जाने नहीं देना चाह रही थी . उसके हाथ में मोबाइल फ़ोन था और सारा ध्यान उसी पर केन्द्रित था . बच्ची झल्ला कर बोली ' क्या बात है जाने क्यों नहीं दे रही हो'?
'रूक जाओ ! तुम्हारे लिए एक शुभकामना का सन्देश  आने वाला है उसे पढ़ कर जाना " कुछ ही समय बाद जब चपरासी ने स्कूल का दरवाज़ा बंद करना शुरू किया तो उसकी बेटी यह बोल कर कि उसे किसी की शुभकामनाये नहीं चाहिए . "मेरे साथ आप हो. मेरे साथ ठाकुरजी है .सब अच्छा होगा .मुझे जाने दो " .  और बेटी माँ के गले में लिपट कर परीक्षा केंद्र के अन्दर चली  गयी.  वक़्त की मांग थी. वह बस एक सन्देश की इंतज़ार में अवाक् और उदास थी. अपने ऑफिस जाने के लिए ऑटो रिक्शा की इंतज़ार में स्टैंड पर खड़ी हो कर बड़ी गहरी सोच में थी . इतने में एक ऑटो रिक्शा उसके निकट आ कर स्वत: रूक गया और चालक ने कहा " चलो मैं आप को छोड़ दूं "यूं तो मैं पुराने शहर जाता नहीं हूँ लेकिन आप को यहाँ खड़ा देख कर मुझे लगा कि आप को गंतव्य पर छोड़ दूं.' रस्ते में फिर चालक ने कहा कि दीदी आप को यह उदासी शोभा नहीं देती . आप के साथ सब अच्छा होगा. एकाएक उस साधारण से व्यक्तित्व के स्वामी की बात मन को छू गयी. सयंत हो कर उसने चालक से पूछ ही लिया." आप को कैसे पता चला की मैं उदास हूँ"? सिर्फ मुस्कुरा  दिया वह चालक .अब वह अपने आप को संभाल चुकी थी. 
सच है हम जिस के पीछे भागते हैं वह मृगतृष्णा बन कर छलता रहता है और जिसके  बारे में आप सोच भी नहीं सकते वही तृण सामान लगने वाला बहुत बड़ा संबल बन जाता है.

Tasveer Tumhari

तस्वीर तुम्हारी

तस्वीर तुम्हारी  देखते हैं  यूं बदल बदल के रुख
  आफ़ताब से चमकते हो तो  कभी दिखते हो महरूख
इंद्र धनुषी रंगों में रंग कर  जैसे सजा हुआ  शबाब 
 विविध रसों से परिपूरन ,जैसे खिलता हुआ गुलाब
देते हो जब मौन दृगो से हम को मूक निमंत्रण
आतुर हो जाता हर जर्रा करने को मधुरिम मिलन
हो जाती है नम सारी  फिजा यादों की फुहारों से 
पिघलते हैं कई जज्बात इस दिल की दीवारों से

रविवार, 27 मार्च 2011

bhranti

 भ्रान्ति

चलने को तो  पग नहीं थे
फिर भी हम चलते ही रहे
कहने को तो  शब्द नहीं थे
फिर भी हम कहते ही रहे
 अनजान डगर ,अनजान सफ़र
अनजान दिशा अनजान नगर
अनजानों की बस्ती में
अनजाने ख्वाब पलते ही रहे
 टूटे बिखरे  hue  नष्ट सब 
मीत पुराने हुए रुष्ट सब 
हम  अपनी सुध बुध भूले
 दामन में सुधियाँ भरते रहे

शनिवार, 26 मार्च 2011

sundarta vadaan ya abhishaap

सुन्दरता वरदान याकि अभिशाप

दर्पण में अपना बिम्ब निहारती सुंदर युवती 
मोहित हुई निरख अपनी छवि को
लजाती थी ,मुस्काती थी , इतराती थी ,
पूनम के चाँद का ख्याल आया 
तो अपना चेहरा कही ज्यादा हसीन नज़र आया
हुआ कुछ ऐसा वाकया जिन्दगी  में
कि जैसे तोड़ लिया डाली से पुष्प किसी ने 
पांखुरी -पांखुरी कर दी अलग ऐसे जैसे
कर दिया हो तक्सीम सारा अक्स किसी जालिम ने 
देख रही थी बिम्ब अपना आज फिर वह दर्पण में
चाँद के मुख पर भी तो दाग है ऐसा ख़याल आया
  चाँद जैसा चेहरा है  या चेहरा ही चाँद है 
सुन्दरता वरदान है याकि अभिशाप 
मनस पटल पर अंकित उभर यह  सवाल आया 

गुरुवार, 24 मार्च 2011

Bhool jane ki yad

भूल जाने की याद 
याद करने पर बढ़ जाती  है बैचैनी दिल की  और भी कुछ इस कदर 
कि भूल कर भी  भूलना फिर कुछ भूल जाती हूँ 
रह रह कर उठता है  यादों का बवंडर यूं 
कि यादों की याद को फिर याद करके याद रखती हूँ
बनते है ,बन कर मिट जाते है कुछ अक्स यूं दिल पर 
कि पल भर को अपना अक्स भी  भूल जाती हूँ 

बुधवार, 23 मार्च 2011

dekho swappan

देखो स्वप्पन 

कैसे कहूँ कि स्वप्पन न देखो 
भोला तुतलाता बचपन था 
स्वप्प्न देख कर बड़ा हुआ है 
शीत तरुण अलसाया सा था 
देख स्वप्पन उतिष्ठ  हुआ है 
यौवन भरमाया फिरता था 
स्वप्प्न देख गतिशील हुआ है 
देख स्वप्प्न वृद्ध अवस्था 
पुन: बढ़ी है जीवन पथ पर 
हर स्वप्पन सजाता नये स्वप्प्न को 
स्वप्पन कराते  पूरण काम 
कर्तव्य ,धरम  निष्ठां संकल्प 
यथार्थ बनाते सपनीली  शाम

ek khaamosh aawaz

एक खामोश आवाज़

लौट जाती है टकरा कर मेरी इन आँखों से 
दूर से आती हुई  एक खामोश आवाज़ 
थरथराती  है कंपकंपाती i है 
मांगती  है इन आँखों के सैलाब से 
इक दर किनारा 
टूट कर बिखरती है ,और फिर संभलती है 
खोजती है इन उलझी बेसुध लटों में
इक सुलझा इशारा  
  चुपके से आती है निकल कर जब भी
उन सिले हुए लबों से उधड कर
दिल दहला ही जाती है
मन बहला ही जाती है
दूर से आती हुई , एक खामोश आवाज़



सोमवार, 21 मार्च 2011

pahla sukh nirogi kaayaa

पहला सुख निरोगी काया 

इंसान का पहला कर्तव्य उसका अपने प्रति जागरूक होना है. अपने आप को समझना और परखना है . निरोगी जीवन जीना उसका अधिकार और उसका परम कर्तव्य है . अपनी काया को निरोग रखने के लिए उसे हर संभव प्रयत्न करना चाहिए . शरीर ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सब कार्य संपन्न किये जाते हैं . अत: इस शरीर का स्वस्थ रहना अति आवश्यक है . जप ताप नियम, सयम,योग ध्यान आदि द्वारा निरोगी काया को बड़े हे सहज ढंग से प्राप्त किया जा सकता है . बस उसे अनुशासित हो कर पालन करना है.
 सत्य ही कहा है कि " पहला सुख निरोगी काया " जिसने भी इस तथ्य को समझ कर इस पर काम किया और निरोगी काया के स्वामित्त्व को प्राप्त किया वही काल जई बन कर जीवन के हर क्षेत्र में विजयी हुआ .








रविवार, 20 मार्च 2011

geet milan ka

गीत मिलन का
 
अपनों से  मिलता  रहे इस  तरह प्यार 
जीवन का हर दिन हो जाए इक त्यौहार 
भर जाता है  रीता पन अपनों की प्रीत से
खिल जाता है हर रंग  मिलन के गीत से 
अनजाना भी साथ चले बन कर अपना जब
कंटक मय जीवन भी बन जाता सपना तब
बहारे आ देहरी पर नत मस्तक हो जाती हैं
प्रकृति भी आ कर तब वन्दनवार सजाती है
 ऊर्जा और ,स्फूर्ति   मानव की करती हैं चाकरी
नव कल्पना बन कर पटरानी  करती है ठाकरी
अपने और उन अपनों का प्यार भरा यह साथ
जगाता  है जीवन में हंस कर  जीने का एहसास


शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली की शुभ कामनाएं !!!!

होली की  शुभ कामनाएं !!!!
अंक में भर कर ,गले लगा कर ,कर माथे पर चुम्बन अंकित
अंदाज़ हमारा  यह होली का ,रहे युगों तक उर में संचित
जीवन में अवसादित जो रंग  रहें  सदा सब   उनसे  वंचित
क्षुधित पिपासित क्षोभित  जीवन , प्रेम सोम में बस रहे रंजित

घृणा निराशा निंदा ईर्ष्या ,हो सब भस्म होलिका ज्वाला में
कुंदन बन कर खूब तपे ,निखरे ,चमके इस जग शाला में 
सुरभित फाग के मधुर क्षणों में ,आओ तन मन  रंग लें 
गुंथे रहे सब  पुष्प विभिन्नित ,   ज्यों  स्नेह तंत माला में


रविवार, 13 मार्च 2011

lahar ka kahar


लहर का कहर (सुनामी)

प्रकम्पित हुआ सागर तल
लीलने सारा जगती तल
तोड़ बाँध  निकली लहर
प्रकृति का बरपा कहर
खामोश हुई साँसे सभी
सहम गया सारा शहर
मौत का उठा बवंडर
महा नाश हुआ भयंकर
जल मगन हुई धरा
सिसक सिसक उठी जरा
बेचैन हुई मौत भी
ढूंढे पनाह यहीं कही
विश्व का क्रंदन करुण
अब ढूँढता नया अरुण
आओ मिलो बढ़ो सभी
प्राची पट खोले अभी
मौत को जीवन दिखाएँ
कहर को फिर आजमायें

शनिवार, 12 मार्च 2011

Moh Bhang

मोह भंग 

छू कर जाती रोज़ हवा 
हर दम उसको उकसाती 
चल संग मेरे दूर चलेंगे 
ख्वाब नया दिखलाती
 पल्लव तरु से लटका लटका
संग पवन के डोले 
उड़ जाऊं संग दूर मैं इसके 
मन ही मन टटोले 
तरु से नाता तोड़ लिया 
ममता से मुख मोड़ लिया 
लगा पवन के साथ विचरने 
जीवन  पल को मोड़ लिया 
विचलित पथ में वह घबराया 
धरती पर जा कर टकराया 
उफ़ !यह कैसा देव दंश 
जीवन का हुआ लुप्त अंश 
मोहित करता है आकर्षण   
मायावी जग में भूला यह मन 
हो नहीं सकता स्थापित कभी वो 
विस्थापित हो जाता जब   जन

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

Ireshya

ईर्ष्या 
मुरझाता सुंदर कोमल मन
प्रज्जवलित हो जब इर्ष्या दाह
भस्म हुए जाते सब अवयव
कसमसाती सी बचती आह

कलरव बन जाता कोलाहल 
वाचाल  शब्द हो जाते मौन 
जीवन पीयूष बने हलाहल 
चेतनता हो जाती गौण 

ओ' पीड़ा की मृग नयनी 
निज निवास में तेरा  वास 
उथल पुथल कर देता जग को 
आश्रित हो जब आती पास  

Thaakur ka Rang

ठाकुर का रंग

हरा लाल न नीला पीला
रंग है मेरा स्नेह सिक्त
  सराबोर हो जो इस रंग में
दुखो से हो जीवन रिक्त
 कहते जब  चुपके कानो में
गुंजित होती है झंकार
सूने मन के आँगन में
छा जाती इक मधु बयार
भावों की गीली माटी पर
आशा  के गिरते बीज नए
अंकुरित होता है नवचेतन
पुष्पित हो जाते  स्वप्पन नए
धूमिल,धूसरित अचेतन भी तब
सजाने  लगता वंदन वार
कुम्लाया मुरझाया जीवन
जीने को हो पुनह ; तैयार
विश्व विदित इतिहास लिखा है
जीते हारा विश्व जंग
कण कण में चढ़ता साहस भरता
ऐसा मेरे ठाकुर का रंग

बुधवार, 9 मार्च 2011

bekal intzaar

 बेकल  इंतजार 

और सन्नाटा सो  गया   रोते रोते 
दिनभर थी उसको बस एक ही ललक
बीते  गा दिन होगी फिर  शाम 
तय कर लम्बा इंतज़ार 
आयेंगे पथ पर वो जिन्हें 
तकती थी निगाहें अपलक 
उफ़ ! बीता न दिन, ना हुई शाम 
जुग जैसे बीता हर पल 
करने को सांझी  तन्हाई 
जीता रहा  हर क्षण खोते खोते 
और सन्नाटा सो गया रोते रोते
दिन गुज़र गये, बीत गयी सदियाँ 
तलाश में उसकी ,बीत गयी घड़ियाँ 
जीवन की हो गयी शाम
वक़्त की सुबह ढोते ढोते 
और सन्नाटा सो गया रोते रोते

मंगलवार, 8 मार्च 2011

Mahila divas

 महिला दिवस 

मैं भगवान् का शुक्रिया अदा करती हूँ कि मुझे मानव जीवन मिला . और शुक्रिया अदा करती हूँ कि उसने मुझे नारी रूप दे कर इस जग में भेजा . मुझे गर्व है अपने नारीत्व पर .............

आज इस महिला दिवस पर मेरी हर एक महिला को शुभ कामनाएं है कि उसके दिल में अपने नारी होने का गर्व हो 
और हर उस पुरुष को जो इस भावना को सम्मानित और स्थापित करे .
हर दिन महिला दिवस के उल्लास और उत्साह जैसे हो

सोमवार, 7 मार्च 2011

mera parichay

मेरा परिचय 

क्या कहते हो 
एक फक्कड़ फकीर हूँ मैं 
यां  विधाता की लिखी 
एक अजब तक़दीर हूँ मैं 
देख पायो तो देखो 
मेरी आँखों की चमक 
हो जाये गी धुंधली 
तेरे पैसे की खनक 
लबो पे छिपी 
मुस्कराहट को देख
मिट जाये गी 
माथे पर खिंची चिंत रेख 
भीड़ में रह कर भी 
 तुम फिरते हो अकेले 
और मैं  !रह कर भी अकेला
जमा कर लेता हूँ  एक मेला 
संतोष की चादर में लिपटा
एक ऐसा बाशिंदा हूँ 
सब कुछ खो कर भी 
हूँ खजानो से भरा

रविवार, 6 मार्च 2011

mahtvaankankhsaa

 मह्त्वांकंक्षा

उन नन्ही झील सी आँखों में 
तैरा करते थे स्वप्पन कभी 
उन फूल से नाज़ुक ओंठो पर 
अठखेली करता था हास्य कभी 

वह  नन्हे पावों की थिरकन 
नृत्य जहां होता नतमस्तक 
वह मधुर कंठ वह तान राग 
संगीत जहां खुद देता दस्तक 

लुप्त हुए सब जीने के ढंग 
हो  गये फीके  जीवन के रंग 
मह्तावान्क्षा कुछ कर पाने की 
छोड़ गयी मौलिकता के रंग 

भूला बचपन खुद अपना बचपन 
तजा जवानी ने निज यौवन
बिसरी तरुणों ने तरुणाई
हुआ बुढापा विकल और अनमन

आश निराश  के झूले निस दिन 
जीवन अब झूला करता है 
हार जीत  की असमंजसता में 
पल प्रति पल पीड़ित रहता है

गुरुवार, 3 मार्च 2011

faansle aur milan ka ehsaas

  फांसले और मिलन का एहसास

क्या दिल जाने क्या है अपना 
जब तक रहा वो दूर  हम से
करता था उसको पाने की तमन्ना 
और आज जब वो है पास दिल के 
तो ढूँढता है फांसले 
चाह कर भी चाह न सका 
पा कर भी पा न सका 
मिट गये सब फांसले जब 
तो पास आ कर भी समा न  सका 
सच है दूरी हमेशा तड्पाती है 
  मिलन इस  एहसास को ठंडा कर जाती है  
सदियों रहें यह  फांसले  जुग जुग जिए यह फांसले 
यह फांसले ही है जो   कराते है 
हर मिलन का एहसास