भ्रान्ति
चलने को तो पग नहीं थे
फिर भी हम चलते ही रहे
कहने को तो शब्द नहीं थे
फिर भी हम कहते ही रहे
अनजान डगर ,अनजान सफ़र
अनजान दिशा अनजान नगर
अनजानों की बस्ती में
अनजाने ख्वाब पलते ही रहे
चलने को तो पग नहीं थे
फिर भी हम चलते ही रहे
कहने को तो शब्द नहीं थे
फिर भी हम कहते ही रहे
अनजान डगर ,अनजान सफ़र
अनजान दिशा अनजान नगर
अनजानों की बस्ती में
अनजाने ख्वाब पलते ही रहे
टूटे बिखरे hue नष्ट सब
मीत पुराने हुए रुष्ट सब
हम अपनी सुध बुध भूले
दामन में सुधियाँ भरते रहे