देखो स्वप्पन
कैसे कहूँ कि स्वप्पन न देखो
भोला तुतलाता बचपन था
स्वप्प्न देख कर बड़ा हुआ है
शीत तरुण अलसाया सा था
देख स्वप्पन उतिष्ठ हुआ है
यौवन भरमाया फिरता था
स्वप्प्न देख गतिशील हुआ है
देख स्वप्प्न वृद्ध अवस्था
पुन: बढ़ी है जीवन पथ पर
हर स्वप्पन सजाता नये स्वप्प्न को
स्वप्पन कराते पूरण काम
कर्तव्य ,धरम निष्ठां संकल्प
यथार्थ बनाते सपनीली शाम