बुधवार, 9 मार्च 2011

bekal intzaar

 बेकल  इंतजार 

और सन्नाटा सो  गया   रोते रोते 
दिनभर थी उसको बस एक ही ललक
बीते  गा दिन होगी फिर  शाम 
तय कर लम्बा इंतज़ार 
आयेंगे पथ पर वो जिन्हें 
तकती थी निगाहें अपलक 
उफ़ ! बीता न दिन, ना हुई शाम 
जुग जैसे बीता हर पल 
करने को सांझी  तन्हाई 
जीता रहा  हर क्षण खोते खोते 
और सन्नाटा सो गया रोते रोते
दिन गुज़र गये, बीत गयी सदियाँ 
तलाश में उसकी ,बीत गयी घड़ियाँ 
जीवन की हो गयी शाम
वक़्त की सुबह ढोते ढोते 
और सन्नाटा सो गया रोते रोते