बेकल इंतजार
और सन्नाटा सो गया रोते रोते
दिनभर थी उसको बस एक ही ललक
बीते गा दिन होगी फिर शाम
तय कर लम्बा इंतज़ार
आयेंगे पथ पर वो जिन्हें
तकती थी निगाहें अपलक
उफ़ ! बीता न दिन, ना हुई शाम
जुग जैसे बीता हर पल
करने को सांझी तन्हाई
जीता रहा हर क्षण खोते खोते
और सन्नाटा सो गया रोते रोते
दिन गुज़र गये, बीत गयी सदियाँ
तलाश में उसकी ,बीत गयी घड़ियाँ
जीवन की हो गयी शाम
वक़्त की सुबह ढोते ढोते
और सन्नाटा सो गया रोते रोते