मोह भंग
छू कर जाती रोज़ हवा
छू कर जाती रोज़ हवा
हर दम उसको उकसाती
चल संग मेरे दूर चलेंगे
ख्वाब नया दिखलाती
पल्लव तरु से लटका लटका
संग पवन के डोले
उड़ जाऊं संग दूर मैं इसके
मन ही मन टटोले
तरु से नाता तोड़ लिया
ममता से मुख मोड़ लिया
लगा पवन के साथ विचरने
जीवन पल को मोड़ लिया
विचलित पथ में वह घबराया
धरती पर जा कर टकराया
उफ़ !यह कैसा देव दंश
जीवन का हुआ लुप्त अंश
मोहित करता है आकर्षण
मायावी जग में भूला यह मन
हो नहीं सकता स्थापित कभी वो
विस्थापित हो जाता जब जन