तस्वीर तुम्हारी
तस्वीर तुम्हारी देखते हैं यूं बदल बदल के रुख
आफ़ताब से चमकते हो तो कभी दिखते हो महरूख
इंद्र धनुषी रंगों में रंग कर जैसे सजा हुआ शबाब
विविध रसों से परिपूरन ,जैसे खिलता हुआ गुलाब
देते हो जब मौन दृगो से हम को मूक निमंत्रण
आतुर हो जाता हर जर्रा करने को मधुरिम मिलन
हो जाती है नम सारी फिजा यादों की फुहारों से
पिघलते हैं कई जज्बात इस दिल की दीवारों से