दिल का सबब
तुम क्या जानो दिल को लगाने का सबब
तुम क्या जानो दिल को मनाने का सबब
इन्तहा प्यार की तुम क्या जानोक्या जाने तुम जीत कर हार जाने का सबब
दिल दिल ही न होता गर यूं न लगाया होता
मिट ही जाते जख्म गर यूं न सताया होता
बन कर राख सुलगती है जो दिन रात इस दिल में
हो जाती बर्फ गर इस को न दहकाया होता
तो चलो बार एक तुम भी लगा लो दिल को
दे अगर प्रीत कोई अपना बना लो उसको
दिल के बदले दिल का मोल बना रखा है
करे जो कद्र दिल की ,दिल में बसा लो उसको