सुन्दरता वरदान याकि अभिशाप
दर्पण में अपना बिम्ब निहारती सुंदर युवती
मोहित हुई निरख अपनी छवि को
लजाती थी ,मुस्काती थी , इतराती थी ,
पूनम के चाँद का ख्याल आया
तो अपना चेहरा कही ज्यादा हसीन नज़र आया
हुआ कुछ ऐसा वाकया जिन्दगी में
कि जैसे तोड़ लिया डाली से पुष्प किसी ने
पांखुरी -पांखुरी कर दी अलग ऐसे जैसे
कर दिया हो तक्सीम सारा अक्स किसी जालिम ने
देख रही थी बिम्ब अपना आज फिर वह दर्पण में
चाँद के मुख पर भी तो दाग है ऐसा ख़याल आया
चाँद जैसा चेहरा है या चेहरा ही चाँद है
सुन्दरता वरदान है याकि अभिशाप
मनस पटल पर अंकित उभर यह सवाल आया