रविवार, 26 जून 2011

apni beti se

किंजल  से !!!

देखा मैंने तुम्हे 
एक छोटे बच्चे की तरह किल्कारते 
तितली के पीछे दौड़ते 
रेत पर घरोंदे बनाते 
और फिर उस को तोड़ कर 
उस पर कूदते फांदते

देखा मैंने तुम्हे 
एक बूढी नानी की तरह 
कसीदा कारी  करते
बड़ी बड़ी नसीहतें देते 
चुपचाप एक कोने में बैठ कर
दुनिया के सुख दुःख का
अनुभव करते करते

देखा मैंने तुम्हे 
एक तरुनी की तरह लजाते
दर्पण के समक्ष अपना बिम्ब  निहारते
सकुचाते ,इतराते ,अपने आप को संवारते 
उत्साहित हो हर आहट को पुकारते

हाँ वोह तुम ही हो !
मेरे प्यारे उपवन में 
एक खिलते गुलाब से
वोह तुम ही हो !!

punye smriti


'अपने पिता जी की याद में '
आज उनकी पहली बरसी पर उनको मेरी श्रधान्जली 

लो साल एक और बीत गया 
लगता है जैसे थी कल की बात 
पल में कट गयी  लम्बी रात 
तलाश भी तलाश को तलाशती   थी 
खो जाती थी  चुपचाप 
और फिर कही दूर से पुकारती थी 
उठते  थे पगचाप , सिहर जाता था जीवन 
झुकते थे दृग चाप , ठिठक जाता था जीवन 
हुआ दीप का अंत, झुलस जाती थी  बाती
वेग पवन का मंद ,उमस भरती थी जाती 
आशंका और आशा का था अद्भुत मिश्रण 
रुके हुए थे श्वास , बस एक आस का चिंतन 
बंधन बाँध ना पाता है उन्मुक्त प्राण को 
उड़ता है स्वछंद ,तज नश्वर  जहान को 
तुम भी तो  अनजान नहीं थे इस रिवाज़ से 
छोड़ गये सर्वस्व गये चले एक बेआवाज़ से 



शनिवार, 11 जून 2011

Jeevan Mantr


जीवन मन्त्र !


बेखुदी का आलम है  और  दूर  कोई मुस्कुराता है 
अपने दिल में मातम है , दूर कोई उत्सव मनाता है 
दोस्त ,दोस्ती, और साथ की बातें  झूठी लगने लगी  
दोस्ती धवस्त  हुई और दोस्त नज़रे चुराता है 
कब तक पुकारो गे  ललक कर तुम भला उसको 
जो सुनी हुई ताकद को भी भूल जाता है 
समझ लो नीरज तुम भी दस्तूर जीवन का 
है यही रिवाज हर खुले जन  मन का 
बचता है उस शख्स से खुद खुदाया  भी 
जो घड़ी घड़ी हर पल रोने की आदत बनाता है 

गुरुवार, 9 जून 2011

Tere jaane ke baad!

 तेरे जाने के बाद !

शमा जलती थी  दिन रात 
अब बुझने सी लगी है 
सुलगती थी जो दिन रात 
राख  होने सी  लगी है 
हो गये शांत उठते थे 
 जो ख्यालों के समुंदर 
हर तरफ सूखी हुई धूल 
 बिखरने सी लगी है 
वोह चल देगा इस तरह  
यूं छोड़ के तन्हा 
अब हर सू में उदासी 
 चमकने सी लगी है 
उठती है कलेजे में 
इक टीस सी हर पल 
हर मर्ज़-ए-इलाजी
दुःख देने लगी है 
कहते है कि वक़्त ही सिल पायेगा 
इन टूटे  हुए जजबो को 
वक़्त की आवाज़ भी 
गूगी सी लगने लगी है 
 


Tere liye!


तेरे लिए !

है अपराध अगर करना प्यार  तुमसे 
हाँ ! तो यह गुनाह किया है हमने  
अगर मुश्किल तेरा मेरे साथ चलना 
हाँ ! तो यह  भी  स्वीकार किया  हमने  
जाओगे इस तरह हो   कर खफा हमसे 
हाँ ! डरते थे ,ना कभी शिकवा किया हमने 
लौट कर आओ गे तुम फिर पास मेरे कभी 
हाँ ! यही सोच कर इंतज़ार किया  हमने  
रखे सलामत  हर दम इस रूह को  खुदा 
हाँ ! दिन रात दुआ मांग सजदा किया  हमने  

किस से कहे!


किस से कहे!

किस से गिला करे ,किस से करे शिकायत 
अपने ही दिल ने जब, दी है दगा हम को 
किया है खून हमने अपने ही जज़्बात का 
आँख के आंसू, पत्थर लगने लगे हमको 
हम साथ लिए चलते थे यादों के समुंदर को 
अब खुद ही समुंदर निगलने लगे हम को 
अब और ना दो हवा इन शोलो को ए नीरज 
किसी  बर्फ के तोंदे  से पिघलने लगे हम को 

Dukh

 दुःख 

याद किया बहुत तुमको 
हम ने रोते रोते 
सूख चुके अब आंसू
जो थे  अविरल बहते 
बन गये गालों पर 
आंसू धारा  के निशान 
मेरे दर्द की कहानी
 अब कहने लगे है
जो यह है  तुम्हारा 
अंदाज़ सज़ा देने का 
तो सच कहें हम 
अपने- आप से भी डरने ही  लगे हैं 
टूट चुका है बहुत  कुछ 
अब अन्दर ही अन्दर
 सीने पर समुंदर के 
गम लरजने ही लगे हैं 
ना करो अब जतन 
जखम भरने का तुम नीरज 
जीते जी  गफलत में मरने भी  लगें  हैं 
लो पी लो समुंदर को 
भर भर के अंजुली में 
यह जाम हैं दुखों के 
जो मुस्कुरा कर लबों से 
अब छलकने ही लगे हैं


बुधवार, 8 जून 2011

Tanaav ka taap

तनाव का ताप
जीवन का तनाव
जैसे जून की भरी
दुपहरी में कहीं
जलते सूरज का ताप
बस देता है राहत 
इक एहसास
जैसे किसी ठंडी
छाया से विधाता ने
किया हो बचाव
 

शुक्रवार, 3 जून 2011

mat jaao !

मत जाओ !
गर रूक सकते हो ,तो रूक जाओ
यूं छोड़ कर  तन्हा मत जाओ
प्रेम सुधा के रस में भीगा
मन है , उसको मत त्ड्पायो
कितना संयित हो जाता हूँ
जब तक रहते तुम मेरे पास
निज बल संचित कर लेता हूँ
जब तक तुम रहते मेरे साथ
सौगंध  तुम्हे भीगे  नयनों की
रहना बस तुम आस-पास
सौगंध तुम्हे है उस सुगंध की
जो तम मन में देती उन्माद
सौगंध  तुम्हे है उस चुम्बन की
जो अधरों पर कर डाला अंकित
सौगंद तुम्हे है उस प्यार की
जो उर ने कर डाला है संचित
बढ़ते पग को रोक लो अपने
समय वेग तो टोक लो अपने
आज मिले तो मिल जाने दो
लब से लब को सिल जाने दो
त्वरित वेग  भावों का सागर
आज उमड़ के बह जाने दो
रोक लो मुझ को ,मत जाने दो
बहुत  हुआ अब खो जाने दो
निज भुजपाश के बांध के बंधन
चिर निद्रा में सो जाने दो


गुरुवार, 2 जून 2011

Jeevan ek maryada


जीवन इक मर्यादा 

जीवन इक मर्यादा है 
गर हो स्वयं से दूर 
तो सब कुछ  आधा है 
रिक्त है , सिक्त है 
हर गम - ख़ुशी में लिप्त है 
होगा गर जीवन सिद्ध 
हर कामना से मुक्त है 
लेकिन यह  इक क़ानून है 
जीवन  इन सब बातों से परे
 बस ! इक जनून है !
 ना धूप है  , ना छाया है 
कोरा प्रतिवाद है 
ना यथार्थ है, ना माया है 
त्रिशंकु बना घूमता है 
अवनि और अम्बर के 
अंतर को चूमता है
इक छिद्र युक्त घट है 
ना भरता है ना टूटता है 
लेता है बलाएँ नित 
मिल कर भी हर घडी 
हाथो से छूटता है 

बुधवार, 1 जून 2011

rishta aise bhi


रिश्ता ऐसे भी 

पुकारा रोज़ था उसको  
लबो पर नाम ना आता था 
निहारा रोज़ था उसको 
दृगो को चैन ना आता था 
मिले जब राह में दोनों 
तो ताजुब ही हुआ दिल को 
मिले हैं आज अनजाने 
मगर रिश्ता पुराना था 
कसक उठती थी अनजानी 
जख्म चुपचाप रिसता था 
शमा दिन रात जलती थी 
शलभ कही दूर मचलता था 
हुए जब खाकसार दोनों 
तो ताजुब ही हुआ दिल को 
हुए हैं आज दोनों राख 
किये सिजदा सुहाना है  
 
 

pukara mohabbat ne


पुकारा मोहब्बत ने 

मोहब्बत ने पुकारा है  जब  भी  मेहरबान हो कर 
मेरी  रूकती हुई साँसों में जैसे प्राण आयें है 
बहाए थे जहां आंसू रुक कर   इंतज़ार में हमने  
सतह पर बन गये मोती और झिलमिलायें है 
बोए थे बीज जो हम ने तेरे प्यार के ए दोस्त 
जमी पर स्नेह के अंकुर उगे ,और फूल आये हैं 
ना जाने होगा क्या  जो गये  छोड़ कर हमको 
ख्यालों ने उदासी के सब दीपक  बुझायें है 
हुआ उन्मुक्त मन मेरा ,उड़े बेपंख नभ थल में 
 कोरी कल्पना ने फिर स्वप्पन  में  पंख फैलाएं हैं