तेरे जाने के बाद !
शमा जलती थी दिन रात
अब बुझने सी लगी है
सुलगती थी जो दिन रात
राख होने सी लगी है
हो गये शांत उठते थे
जो ख्यालों के समुंदर
हर तरफ सूखी हुई धूल
बिखरने सी लगी है
वोह चल देगा इस तरह
यूं छोड़ के तन्हा
अब हर सू में उदासी
चमकने सी लगी है
उठती है कलेजे में
इक टीस सी हर पल
हर मर्ज़-ए-इलाजी
दुःख देने लगी है
कहते है कि वक़्त ही सिल पायेगा
इन टूटे हुए जजबो को
वक़्त की आवाज़ भी
गूगी सी लगने लगी है