बुधवार, 1 जून 2011

pukara mohabbat ne


पुकारा मोहब्बत ने 

मोहब्बत ने पुकारा है  जब  भी  मेहरबान हो कर 
मेरी  रूकती हुई साँसों में जैसे प्राण आयें है 
बहाए थे जहां आंसू रुक कर   इंतज़ार में हमने  
सतह पर बन गये मोती और झिलमिलायें है 
बोए थे बीज जो हम ने तेरे प्यार के ए दोस्त 
जमी पर स्नेह के अंकुर उगे ,और फूल आये हैं 
ना जाने होगा क्या  जो गये  छोड़ कर हमको 
ख्यालों ने उदासी के सब दीपक  बुझायें है 
हुआ उन्मुक्त मन मेरा ,उड़े बेपंख नभ थल में 
 कोरी कल्पना ने फिर स्वप्पन  में  पंख फैलाएं हैं