पुकारा मोहब्बत ने
मोहब्बत ने पुकारा है जब भी मेहरबान हो कर
मेरी रूकती हुई साँसों में जैसे प्राण आयें है
बहाए थे जहां आंसू रुक कर इंतज़ार में हमने
सतह पर बन गये मोती और झिलमिलायें है
बोए थे बीज जो हम ने तेरे प्यार के ए दोस्त
जमी पर स्नेह के अंकुर उगे ,और फूल आये हैं
ना जाने होगा क्या जो गये छोड़ कर हमको
ख्यालों ने उदासी के सब दीपक बुझायें है
हुआ उन्मुक्त मन मेरा ,उड़े बेपंख नभ थल में
कोरी कल्पना ने फिर स्वप्पन में पंख फैलाएं हैं