जीवन मन्त्र !
बेखुदी का आलम है और दूर कोई मुस्कुराता है
अपने दिल में मातम है , दूर कोई उत्सव मनाता है
दोस्त ,दोस्ती, और साथ की बातें झूठी लगने लगी
दोस्ती धवस्त हुई और दोस्त नज़रे चुराता है
कब तक पुकारो गे ललक कर तुम भला उसको
जो सुनी हुई ताकद को भी भूल जाता है
समझ लो नीरज तुम भी दस्तूर जीवन का
है यही रिवाज हर खुले जन मन का
बचता है उस शख्स से खुद खुदाया भी
जो घड़ी घड़ी हर पल रोने की आदत बनाता है