दुःख
याद किया बहुत तुमको
हम ने रोते रोते
सूख चुके अब आंसू
जो थे अविरल बहते
बन गये गालों पर
आंसू धारा के निशान
मेरे दर्द की कहानी
अब कहने लगे है
जो यह है तुम्हारा
अंदाज़ सज़ा देने का
तो सच कहें हम
अपने- आप से भी डरने ही लगे हैं
टूट चुका है बहुत कुछ
अब अन्दर ही अन्दर
सीने पर समुंदर के
गम लरजने ही लगे हैं
ना करो अब जतन
जखम भरने का तुम नीरज
जीते जी गफलत में मरने भी लगें हैं
लो पी लो समुंदर को
भर भर के अंजुली में
यह जाम हैं दुखों के
जो मुस्कुरा कर लबों से
अब छलकने ही लगे हैं