गुरुवार, 9 जून 2011

Dukh

 दुःख 

याद किया बहुत तुमको 
हम ने रोते रोते 
सूख चुके अब आंसू
जो थे  अविरल बहते 
बन गये गालों पर 
आंसू धारा  के निशान 
मेरे दर्द की कहानी
 अब कहने लगे है
जो यह है  तुम्हारा 
अंदाज़ सज़ा देने का 
तो सच कहें हम 
अपने- आप से भी डरने ही  लगे हैं 
टूट चुका है बहुत  कुछ 
अब अन्दर ही अन्दर
 सीने पर समुंदर के 
गम लरजने ही लगे हैं 
ना करो अब जतन 
जखम भरने का तुम नीरज 
जीते जी  गफलत में मरने भी  लगें  हैं 
लो पी लो समुंदर को 
भर भर के अंजुली में 
यह जाम हैं दुखों के 
जो मुस्कुरा कर लबों से 
अब छलकने ही लगे हैं