रिश्ता ऐसे भी
पुकारा रोज़ था उसको
लबो पर नाम ना आता था
निहारा रोज़ था उसको
दृगो को चैन ना आता था
मिले जब राह में दोनों
तो ताजुब ही हुआ दिल को
मिले हैं आज अनजाने
मगर रिश्ता पुराना था
कसक उठती थी अनजानी
जख्म चुपचाप रिसता था
शमा दिन रात जलती थी
शलभ कही दूर मचलता था
हुए जब खाकसार दोनों
तो ताजुब ही हुआ दिल को
हुए हैं आज दोनों राख
किये सिजदा सुहाना है