बुधवार, 1 जून 2011

rishta aise bhi


रिश्ता ऐसे भी 

पुकारा रोज़ था उसको  
लबो पर नाम ना आता था 
निहारा रोज़ था उसको 
दृगो को चैन ना आता था 
मिले जब राह में दोनों 
तो ताजुब ही हुआ दिल को 
मिले हैं आज अनजाने 
मगर रिश्ता पुराना था 
कसक उठती थी अनजानी 
जख्म चुपचाप रिसता था 
शमा दिन रात जलती थी 
शलभ कही दूर मचलता था 
हुए जब खाकसार दोनों 
तो ताजुब ही हुआ दिल को 
हुए हैं आज दोनों राख 
किये सिजदा सुहाना है