'अपने पिता जी की याद में '
आज उनकी पहली बरसी पर उनको मेरी श्रधान्जली
लो साल एक और बीत गया
लगता है जैसे थी कल की बात
पल में कट गयी लम्बी रात
तलाश भी तलाश को तलाशती थी
खो जाती थी चुपचाप
और फिर कही दूर से पुकारती थी
उठते थे पगचाप , सिहर जाता था जीवन
झुकते थे दृग चाप , ठिठक जाता था जीवन
हुआ दीप का अंत, झुलस जाती थी बाती
वेग पवन का मंद ,उमस भरती थी जाती
आशंका और आशा का था अद्भुत मिश्रण
रुके हुए थे श्वास , बस एक आस का चिंतन
बंधन बाँध ना पाता है उन्मुक्त प्राण को
उड़ता है स्वछंद ,तज नश्वर जहान को
तुम भी तो अनजान नहीं थे इस रिवाज़ से
छोड़ गये सर्वस्व गये चले एक बेआवाज़ से