शुक्रवार, 3 जून 2011

mat jaao !

मत जाओ !
गर रूक सकते हो ,तो रूक जाओ
यूं छोड़ कर  तन्हा मत जाओ
प्रेम सुधा के रस में भीगा
मन है , उसको मत त्ड्पायो
कितना संयित हो जाता हूँ
जब तक रहते तुम मेरे पास
निज बल संचित कर लेता हूँ
जब तक तुम रहते मेरे साथ
सौगंध  तुम्हे भीगे  नयनों की
रहना बस तुम आस-पास
सौगंध तुम्हे है उस सुगंध की
जो तम मन में देती उन्माद
सौगंध  तुम्हे है उस चुम्बन की
जो अधरों पर कर डाला अंकित
सौगंद तुम्हे है उस प्यार की
जो उर ने कर डाला है संचित
बढ़ते पग को रोक लो अपने
समय वेग तो टोक लो अपने
आज मिले तो मिल जाने दो
लब से लब को सिल जाने दो
त्वरित वेग  भावों का सागर
आज उमड़ के बह जाने दो
रोक लो मुझ को ,मत जाने दो
बहुत  हुआ अब खो जाने दो
निज भुजपाश के बांध के बंधन
चिर निद्रा में सो जाने दो