एक खामोश आवाज़
लौट जाती है टकरा कर मेरी इन आँखों से
दूर से आती हुई एक खामोश आवाज़
थरथराती है कंपकंपाती i है
मांगती है इन आँखों के सैलाब से
इक दर किनारा
टूट कर बिखरती है ,और फिर संभलती है
खोजती है इन उलझी बेसुध लटों में
इक सुलझा इशारा
चुपके से आती है निकल कर जब भी
उन सिले हुए लबों से उधड कर
दिल दहला ही जाती है
मन बहला ही जाती है
दूर से आती हुई , एक खामोश आवाज़
उन सिले हुए लबों से उधड कर
दिल दहला ही जाती है
मन बहला ही जाती है
दूर से आती हुई , एक खामोश आवाज़