गुरुवार, 15 मार्च 2012

गमन

गमन
व्यथित तार वीणा के
हुए हौले झंकृत
कराहता रहा विश्व  
पीड़ा के गम  से
मधुर सेज सपन  के
विक्षिप्त हुए यूं  
डसने  लगे कूल  
जैसे नाग फन से
उठे तुम दिल से क्या
उठ गया जहां यह
धधक धधक मचे यहाँ
शूल खिले मन के
आये थे तो चुप्पी थी 
जाने का कोलाहल 
नीड़ त्रिन बिखर गये
कैसा  था तेरा गमन ?