गमन
व्यथित तार वीणा के
हुए हौले झंकृत
कराहता रहा विश्व
पीड़ा के गम से
मधुर सेज सपन के
विक्षिप्त हुए यूं
डसने लगे कूल
जैसे नाग फन से
उठे तुम दिल से क्या
उठ गया जहां यह
धधक धधक मचे यहाँ
शूल खिले मन के
आये थे तो चुप्पी थी
जाने का कोलाहल
नीड़ त्रिन बिखर गये
कैसा था तेरा गमन ?