रविवार, 17 अप्रैल 2011

Pukar

पुकार
उमड़ पडा फिर सैलाब दर्द का
सालों तक जिसको था समेटे रखा 
उघड गया फिर  हर इक जख्म
सालो तक जिसे था  ढके रखा
मशवरा दोस्त का भी ना सहला सका
आज कुछ भी इस दिल को मना ना सका 
बहने दो इन आँखों से अब और आंसू बहने दो
बस कहो मत कुछ  मुझे यूं ही रहने दो
तन्हाईओं को लगा लेंगे फिर हम गले अपने
गुमनामी में ही जी लेंगे बिसरा  देंगे वो सब सपने
नहीं है अब हिम्मत की इस गम से अब लड़ जाऊं मैं
नहीं है अब चाहत की तुम बिन इस जग को आजमाऊँ मैं
आजाओ बार इक,बस इक बार आजाओ तुम
अकेला जी चुका बहुत बस माँ अब अपने आँचल में छुपाओ तुम