शनिवार, 16 अप्रैल 2011

Kaal

काल
नन्ही सी किलकारी के संग
झूमता गाता आता काल
जीवन की चढ़ती बेला में
प्रात: सुहानी लाता काल
तरुण हुआ जाता जब जीवन
उत्श्रीन्ख्ल हो जाता काल
आशा की अरुणाई लेकर
सुंदर खवाब सजाता काल
नव चेतन तरु पल्लव जैसा
अंग अंग महकाता काल
यौवन के उचतम शिखरों को
जब भी छू कर आता काल
दिन ढल जाता होती शाम
जीवन को भी मिलता आराम
इक चक्र को करके मुक्त
फिर नया चक्र दोहराता काल
उषा से रजनी बेला तक
काल चक्र में घूमे काल
जीवन से मृत्यु तक भिन्नित
परिवेशों में घूमे काल