हारे को हरिनाम
हर तरफ निराशा थी मन बड़ा हताश था . तरह तरह की आशंकाएं जन्म लेती और दम तोडती थी. आशा थक हार कर किसी कोने में जा कर सुप्त अवस्था में बैठ गई थी निकलने का कोई छोर सूझ नहीं रहा था.ऐसे मुसीबत के समय में भगवान का रूप माँ या मित्र के रूप में उभर कर आता है . माँ को गुज़रे चार बरस हो गये . इसलिय मित्र का द्वार खटखटाया .बड़े धैर्य से मित्र ने भी अपना कीमती वक़्त निकल कर समय की मांग देखते और मेरी हालत देखते हुए भरपूर सहयोग दिया और मुसीबत के हर पहलु के प्रशन का हल दिया .लेकिन मन अपने ही प्रशन जाल में उलझा रहा और दिए गए हर प्रशन के हल में उलझता चला गया . काफ़ी वक़्त हो गया था ऑफिस बंद हो चुके थे . घर तो आना ही था हम भी घर आ गये. नवरात्र के व्रत और हरी नाम की अखंड ज्योत और हरी का आह्वान कर के राम चरितमानस का नव परायण का पाठ रखा हुआ था .उस दिन का पाठ अधुरा था . इसलिए हाथ मुख धो कर जब रात के करीब ११ बजे पाठ करने बैठी तो निद्रा देवी ने अपना अधिकार जमाना शुरू किया .भजति और निद्रा की जंग के बीच निद्रा देवी की जीत हुई. और राम चरित मनस जी को हाथ जोड़ कर और यह कह कर कि कल पूर्ती कर लेंगे , निद्रा अंक में समाना जरूरी है क्योंकि सुबह की आवश्यक बैठक के लिए तरोताज़ा होना जरूरी है और फिर सोते सोते इसी मजबूरी की भक्ति में कोई आनंद नहीं आ रहा इसलिए रोक देना जरूरी है .हरिनाम के प्रज्जवलित अखंड दीप में घी के दो चम्मच डाल कर निद्रा के अंक में खो गई.उषाकाल में जब पुनह मदिर में जा कर बैठी तो आश्चर्य की कोई सीमा ना थी. अखंड दीप जल कर भस्म हो चुका था . आशंकाएं और विकसित हो गई. भावनाओं पर काबू पा कर दीप पुनह प्रज्जवलित किया . छूट गया पाठ पूरा किया .और दफ्तर में होने वाली खास मीटिंग के बारे में ही सोच कर घर से निकल गयी.इतनी सहज और अप्रत्याशित ढंग से मीटिंग निपट गयी और सब कुछ मेरे अनुसार ही हुआ. अब बहुत प्रसन्न थी .अब एहसास होने लगा की ठाकुर जी स्वयं आ कर मेरे सारथि बन गये थे. मित्र के रूप में वह थे अखंड दीप के एकाएक भस्म हो जाने के ढंग से उन्होंने अपने आगमन की सूचन दी थी. अब रोम रोम सिहर गया . उनका साथ इस तरह से मिलेगा कभी इसका अनुमान भी नहीं लगाया था . मित्रे से सारी चटना का वर्णन किया . पुनह उकसे पाच पहुँच कर उसके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया .घर आ कर उनकी उपस्थिति का एहसास बार बार किया तो मन रोमांचित हो गया .
अब हर तरफ आशा ही आशा है.
सच है हारे को हरिनाम
अब हर तरफ आशा ही आशा है.
सच है हारे को हरिनाम
हर तरफ निराशा थी मन बड़ा हताश था . तरह तरह की आशंकाएं जन्म लेती और दम तोडती थी. आशा थक हार कर किसी कोने में जा कर सुप्त अवस्था में बैठ गई थी निकलने का कोई छोर सूझ नहीं रहा था.ऐसे मुसीबत के समय में भगवान का रूप माँ या मित्र के रूप में उभर कर आता है . माँ को गुज़रे चार बरस हो गये . इसलिय मित्र का द्वार खटखटाया .बड़े धैर्य से मित्र ने भी अपना कीमती वक़्त निकल कर समय की मांग देखते और मेरी हालत देखते हुए भरपूर सहयोग दिया और मुसीबत के हर पहलु के प्रशन का हल दिया .लेकिन मन अपने ही प्रशन जाल में उलझा रहा और दिए गए हर प्रशन के हल में उलझता चला गया . काफ़ी वक़्त हो गया था ऑफिस बंद हो चुके थे . घर तो आना ही था हम भी घर आ गये. नवरात्र के व्रत और हरी नाम की अखंड ज्योत और हरी का आह्वान कर के राम चरितमानस का नव परायण का पाठ रखा हुआ था .उस दिन का पाठ अधुरा था . इसलिए हाथ मुख धो कर जब रात के करीब ११ बजे पाठ करने बैठी तो निद्रा देवी ने अपना अधिकार जमाना शुरू किया .भजति और निद्रा की जंग के बीच निद्रा देवी की जीत हुई. और राम चरित मनस जी को हाथ जोड़ कर और यह कह कर कि कल पूर्ती कर लेंगे , निद्रा अंक में समाना जरूरी है क्योंकि सुबह की आवश्यक बैठक के लिए तरोताज़ा होना जरूरी है और फिर सोते सोते इसी मजबूरी की भक्ति में कोई आनंद नहीं आ रहा इसलिए रोक देना जरूरी है .हरिनाम के प्रज्जवलित अखंड दीप में घी के दो चम्मच डाल कर निद्रा के अंक में खो गई.उषाकाल में जब पुनह मदिर में जा कर बैठी तो आश्चर्य की कोई सीमा ना थी. अखंड दीप जल कर भस्म हो चुका था . आशंकाएं और विकसित हो गई. भावनाओं पर काबू पा कर दीप पुनह प्रज्जवलित किया . छूट गया पाठ पूरा किया .और दफ्तर में होने वाली खास मीटिंग के बारे में ही सोच कर घर से निकल गयी.इतनी सहज और अप्रत्याशित ढंग से मीटिंग निपट गयी और सब कुछ मेरे अनुसार ही हुआ. अब बहुत प्रसन्न थी .अब एहसास होने लगा की ठाकुर जी स्वयं आ कर मेरे सारथि बन गये थे. मित्र के रूप में वह थे अखंड दीप के एकाएक भस्म हो जाने के ढंग से उन्होंने अपने आगमन की सूचन दी थी. अब रोम रोम सिहर गया . उनका साथ इस तरह से मिलेगा कभी इसका अनुमान भी नहीं लगाया था . मित्रे से सारी चटना का वर्णन किया . पुनह उकसे पाच पहुँच कर उसके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया .घर आ कर उनकी उपस्थिति का एहसास बार बार किया तो मन रोमांचित हो गया .
अब हर तरफ आशा ही आशा है.
सच है हारे को हरिनाम
अब हर तरफ आशा ही आशा है.
सच है हारे को हरिनाम