शनिवार, 30 अप्रैल 2011

ehsaas


एहसास 
कल तक जो वह  था अपना
वोह आज लगा बेगाना सा 
कल तक जो देखा था सपना 
वोह आज लगा बेमाना सा 
 दिवा स्वप्पन सा भ्रमित  जाल
चंदा चमके बिच तरन ताल 
छूने को हो लालायित मन 
हिलजुल लहरों में हो जाए गुम 
त्वरित बिजली  सा चकाचौंध 
बादल गर्जन में करे औंध 
 द्रुत गामिनी चमक चमक 
पल भर ही  में  हो जाए गौण  
वह सर्द हवाओं की सिहरन 
वह वर्षा की गीली फुहरण
वह गर्म हवाओं का जादू
हाँ ,मन हुआ था बेकाबू 
सुख दुःख के विरले संगम पर  
पाया था तत्पर हमने उसको   
वह सरल ह्रदय बेबाक वचन 
हर पल सहलाया था उसको 
कब आया था कब चला गया 
मन समझ ना पाया घटना क्रम 
हर पल को भरने वाला जो 
अब रिक्त कर गया यह जीवन