चमकती आशा
चमकते सूरज ने फिर आज
इस धरती को रंग डाला
सुनहरी धूप के जादू का
अजब जाल फैला डाला
लिया हिंडोल यौवन ने
स्वप्पन फिर झूम कर उमड़े
चले फिर आजमाईश को
हुए कुछ बीज नवान्कुरे
चुरा ना ले कोई इस धूप का जादू कर लो बंध मुठी न हो जाए यह बेकाबू
अनगिनत ख्वाब चमके हैं इसकी किरणों से
नाप लेंगे यह ब्रहमांड सारा तीन चरणों से