मंगलवार, 3 मई 2011

chamkati aasha


चमकती  आशा 

चमकते सूरज ने फिर आज 
इस धरती को रंग डाला 
सुनहरी  धूप के  जादू का 
अजब जाल फैला  डाला  
लिया हिंडोल यौवन ने 
स्वप्पन फिर झूम कर उमड़े 
चले फिर आजमाईश को 
हुए कुछ बीज नवान्कुरे 
चुरा ना ले कोई इस धूप का जादू 
कर लो बंध मुठी न हो जाए यह बेकाबू 
अनगिनत ख्वाब चमके हैं इसकी किरणों से 
नाप लेंगे यह ब्रहमांड सारा तीन चरणों से