गुरुवार, 19 मई 2011

jaroor hogi sahar


जरूर  होगी सहर

टूट ही गया रखा था संभाले जो यह दिल
जाने तुम्हे इस बात का इल्म हो या ना हो
बनते है बिगड़ते हैं यहाँ अफ़साने हज़ारों
जाने तुम्हे इस बात का एहसास हो कि ना हो
मुमकिन था तुम्हारे लिए मुझे यूं छोड़ के जाना
जाने तुम्हे इस बात का अंदाज़ हो कि ना हो
दे दे कर बुलाया था जिसे  हमने सदायें
निकलेगा वोह  सितमगर यह पता हो कि ना हो
अब गमजदा क्यों हो कर बठे हैं यूं नीरज
उठती है कलेजे में टीस-ए मोहब्बत
गर लोगे समझ यह बात जीते जी जहाँ में
खिलते नहीं है फूल सदा बाग़-ए-वफा में
हो जाए गा सरल यह कढी धूप का सफर
हो कितनी भी लम्बी रात जरूर होगी सहर