जरूर होगी सहर
टूट ही गया रखा था संभाले जो यह दिल
जाने तुम्हे इस बात का इल्म हो या ना हो
बनते है बिगड़ते हैं यहाँ अफ़साने हज़ारों
जाने तुम्हे इस बात का एहसास हो कि ना हो
मुमकिन था तुम्हारे लिए मुझे यूं छोड़ के जाना
जाने तुम्हे इस बात का अंदाज़ हो कि ना हो
दे दे कर बुलाया था जिसे हमने सदायें
निकलेगा वोह सितमगर यह पता हो कि ना हो
अब गमजदा क्यों हो कर बठे हैं यूं नीरज
उठती है कलेजे में टीस-ए मोहब्बत
गर लोगे समझ यह बात जीते जी जहाँ में
खिलते नहीं है फूल सदा बाग़-ए-वफा में
हो जाए गा सरल यह कढी धूप का सफर
हो कितनी भी लम्बी रात जरूर होगी सहर