बंधन
बंधन अनजाना इक तार से जुड़ा है
रहता है कहीं दूर
रूहों में मिला है
यह कैसा सम्मोहन
या कोई कशिश है
इक शख्स ख्यालों में
पलता ही रहा है
उठती रही प्यास
पाने को उसको
बढ़ते रहे हाथ
छू लेने को उसको
वह चश्म -ए तरुनम
या नूर-ए-इलाही
'जिन्दा हूँ अभी '
उसका एहसास
देता है गवाही