शनिवार, 14 मई 2011

Apni talassh main

 अपनी तलाश में 

जितना भी दर्द में डूबोगे 
उतना गहराते जाओ गे 
जब तोड़ भंवर से निकलो गे 
 मंजिल खुद ही पा जाओगे 
यह सुख दुःख तो  परिभाषा है 
संग जीवन का कुछ मेल नहीं 
पल इक अनमोल  खज़ाना है 
लौटा पायो! कोई खेल नहीं 
तो जियो इसी के साथ जियो 
और मरो ! इसी के साथ मरो 
हर कोई इस जग में  तन्हा है  
यह बात अधूरी सी लगे भले 
जीवन का सार है यही छुपा 
यह बात अपनी ना क्यों लगे हमे
"मैं हूँ" तो मेरा साथ भला 
"मैं हूँ "तो सब गम सह चला 
"मैं हूँ "तो खुशिया हैं मेरी 
"मैं हूँ" तो दुनिया है मेरी 
क्यों बाहर भीड़ की दुनिया में
सर्वस्व तलाशा करते है 
क्यों ना बन कर खुद अपने के 
भीतर महसूसा करते है