शुक्रवार, 13 मई 2011

Namm tumhara hoga


नाम तुम्हारा होगा 

रुकी रुकी थी साँसे मेरी ,और थी थमी थमी सी धड़कन 
रूखे  तप्त ओ'  सुर्ख लबों पर फैल गयी थी मीठी शबनम 
गोरी बैयाँ पर निज हाथों से जब स्पर्श दिया था तुमने 
कसमसा जाती  थी देह , और ज्वार उठता था मन में 

जल उठते थे दीप हज़ारों , रौशन होता तम था 
पट प्राची का खुल जाता, पुलकित शून्य विजिन था 
मधुकर नव तरंगित लहरें लहर लहर उठती थी 
पीयूष रस गागर छलका कर जीवन विष  हरती थी 

झोंका तेरे नव ख्याल का जब भी मन अंगना  में आता  
महकते मधुमास का सौरभ हर जर्रे में बिखरा जाता 
पास रहो या रहो दूर अब ,हर पल ध्यान तुम्हारा होगा 
सौ सौ श्वास रहेंगे मेरे , इन पर नाम तुम्हारा होगा