मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

पगला मन

पगला मन

पा कर कभी जो तन्हा मुझ को
यादे संग मेरे   हँसती है
तब जाने यह मन क्यों  रोता है ?

सुरभित मधुर समीर कभी जब
बन वसंत छा जाती है
तब जाने यह मान क्यों रोता है

सघन रात में विकल दामिनी
जब आँचल छू जाती है
तब जाने यह मन क्यों रोता है

चैत मास की रजत चाँदनी
जब आँगन में बिछ जाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है

मन की बात छुपी जोमन  में
तड़प तड़प जब खुल जाती है
तब जाने   यह मन क्यो रोता है

बिरहन पा प्रीतम की पाँति
जब बोल बिरह के गाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है

पल का मिलना : बेअंत बिछड़ना
जब सांसो में घिर आता है
तब यह पगला मन रोता है