पगला मन
पा कर कभी जो तन्हा मुझ को
यादे संग मेरे हँसती है
तब जाने यह मन क्यों रोता है ?
सुरभित मधुर समीर कभी जब
बन वसंत छा जाती है
तब जाने यह मान क्यों रोता है
सघन रात में विकल दामिनी
जब आँचल छू जाती है
तब जाने यह मन क्यों रोता है
चैत मास की रजत चाँदनी
जब आँगन में बिछ जाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है
मन की बात छुपी जोमन में
तड़प तड़प जब खुल जाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है
बिरहन पा प्रीतम की पाँति
जब बोल बिरह के गाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है
पल का मिलना : बेअंत बिछड़ना
जब सांसो में घिर आता है
तब यह पगला मन रोता है
पा कर कभी जो तन्हा मुझ को
यादे संग मेरे हँसती है
तब जाने यह मन क्यों रोता है ?
सुरभित मधुर समीर कभी जब
बन वसंत छा जाती है
तब जाने यह मान क्यों रोता है
सघन रात में विकल दामिनी
जब आँचल छू जाती है
तब जाने यह मन क्यों रोता है
चैत मास की रजत चाँदनी
जब आँगन में बिछ जाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है
मन की बात छुपी जोमन में
तड़प तड़प जब खुल जाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है
बिरहन पा प्रीतम की पाँति
जब बोल बिरह के गाती है
तब जाने यह मन क्यो रोता है
पल का मिलना : बेअंत बिछड़ना
जब सांसो में घिर आता है
तब यह पगला मन रोता है